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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 16
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    दुरो॑ दे॒वीर्दिशो॑ म॒हीर्ब्र॒ह्मा दे॒वो बृह॒स्पतिः॑।प॒ङ्क्तिश्छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं तु॑र्य्य॒वाड् गौर्वयो॑ दधुः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दुरः॑। दे॒वीः। दिशः॑। म॒हीः। ब्र॒ह्मा। दे॒वः। बृह॒स्पतिः॑। प॒ङ्क्तिः। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। तु॒र्य्य॒वाडिति॑ तर्य्य॒ऽवाट्। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दुरो देवीर्दिशो महीर्ब्रह्मा देवो बृहस्पतिः । पङ्क्तिश्छन्द इहेन्द्रियन्तुर्यवाड्गौर्वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दुरः। देवीः। दिशः। महीः। ब्रह्मा। देवः। बृहस्पतिः। पङ्क्तिः। छन्दः। इह। इन्द्रियम्। तुर्य्यवाडिति तर्य्यऽवाद्। गौः। वयः। दधुः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 16
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    भावार्थ -
    ( देवी:) तेजवाली स्त्रियां, (दुरः) प्रकाशं वाले बड़े-बड़े द्वार और (मही:) बड़ी विस्तृत (दिशः) दिशाओं के समान (महीः दिशः) पूजनीय, गुरुवाणियां और (ब्रह्मा) चतुर्वेदों का विद्वान् ( देवः ) ज्ञान का प्रकाशक, (बृहस्पतिः) वेद वाणी का पालक, अथवा, महान् राष्ट्रपति देव राजा और (पंक्तिः छन्दः) चालीस अक्षरों वाले पक्ति छन्द के समान ४० वर्ष तक का ब्रह्मचारी पुरुष और (तुर्यवाड् गौः) चतुर्थ वर्ष का बैल अथवा ( तुर्यवाड ) चतुर्थ आश्रम का सेवी, विद्वान् परित्राट् और (गौः ) आदित्य के समान तेजस्वी ज्ञानी पुरुष ये सब ( इन्द्रियम् ) ऐश्वर्य और दीर्घ जीवन स्वयं धारण करते हैं, वे ही राष्ट्र में भी ऐश्वर्य, तेजबल और दीर्घ जीवन धारण करावें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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