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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 36
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
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    होता॑ यक्ष॒द् दैव्या॒ होता॑रा भि॒षजा॒श्विनेन्द्रं॒ न जागृ॑वि॒ दिवा॒ नक्तं॒ न भे॑ष॒जैः शूष॒ꣳ सर॑स्वती भि॒षक् सीसे॑न दु॒हऽइन्द्रि॒यं पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। दैव्या॑। होता॑रा। भि॒षजा॑। अ॒श्विना॑। इन्द्र॑म्। न। जागृ॑वि। दिवा॑। नक्त॑म्। न। भे॒ष॒जैः। शूष॑म्। सर॑स्वती। भि॒षक्। सीसे॑न। दु॒हे॒। इ॒न्द्रि॒यम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षद्दैव्या होतारा भिषजाश्विनेन्द्रन्न जागृवि दिवा नक्तन्न भेषजैः शूषँ सरस्वती भिषक्सीसेन दुह इन्द्रियम्पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। दैव्या। होतारा। भिषजा। अश्विना। इन्द्रम्। न। जागृवि। दिवा। नक्तम्। न। भेषजैः। शूषम्। सरस्वती। भिषक्। सीसेन। दुहे। इन्द्रियम्। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 36
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    भावार्थ -
    (होता) पदाधिकारियों का नियोक्ता विद्वान् (दैव्या होतारौ ). देवों, प्रजा के विद्वान्, दानशील पुरुषों के हितकारी (होतारौ ) प्रधान वशकारी अधिकारी दो पुरुषों को और (अश्विना) अधिकार और राजनीतिःविद्या में व्यापक्, (भिषजा) शरीर के रोगों के चिकित्सकों के समान राष्ट्र दोषों के सुधारक पुरुषों को और (इन्द्रं न ) शत्रुहन्ता पुरुष को भी ( यक्षत् ) नियुक्त करे । (भिषक् भेषजै: न) वैद्य जिस प्रकार औषधों द्वारा शरीर में बल उत्पन्न करता है उसी प्रकार ( सरस्वती ) उत्तम विद्वत्सभा ( दिवा नक्तम् ) दिन रात (जागृवि) जागती हुई, सावधान रह कर, ( सीसेन ) सीसा के बने गुलिकास्त्र से ( शुषम् ) बल, सामर्थ्य और ( इन्द्रियम् ) - इन्द्र, राजा के उचित मान, ऐश्वर्य को भी ( दुहे ) उत्पन्न करे । ( पयः सोमः ० ) इत्यादि पूर्ववत् ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - निचृदष्टिः मध्यमः ॥

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