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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - आदित्या देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    म॒हीमू॒ षु मा॒तर॑ꣳ सुव्र॒ताना॑मृ॒तस्य॒ पत्नी॒मव॑से हुवेम।तु॒वि॒क्ष॒त्राम॒जर॑न्तीमुरू॒ची सु॒शर्मा॑ण॒मदितिꣳ सु॒प्रणी॑तिम्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हीम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सु। मा॒तर॑म्। सु॒व्र॒ताना॑म्। ऋ॒तस्य॑। पत्नी॑म्। अव॑से। हु॒वे॒म॒। तु॒वि॒क्ष॒त्रामिति॑ तुविऽक्ष॒त्राम्। अ॒जर॑न्तीम्। उ॒रू॒चीम्। सु॒शर्मा॑ण॒मिति॑ सु॒ऽशर्मा॑णम्। अदि॑तिम्। सु॒प्रणी॑तिम्। सु॒प्रनी॑ति॒मिति॑ सु॒ऽप्रनी॑तिम् ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महीमू षु मातरँ सुव्रतानामृतस्य पत्नीमवसे हुवेम । तुविक्षत्रामजरन्तीमुरूचीँ सुशर्माणमदितिँ सुप्रणीतिम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महीम्। ऊँऽइत्यूँ। सु। मातरम्। सुव्रतानाम्। ऋतस्य। पत्नीम्। अवसे। हुवेम। तुविक्षत्रामिति तुविऽक्षत्राम्। अजरन्तीम्। उरूचीम्। सुशर्माणमिति सुऽशर्माणम्। अदितिम्। सुप्रणीतिम्। सुप्रनीतिमिति सुऽप्रनीतिम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 5
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    भावार्थ -
    हम लोग, ( महीम् ) बड़ी माननीय, ( सुव्रतानाम् मात -- रम् ) उत्तम व्रतों, नियमों, कर्त्तव्य आचारणों को निर्माण करने वाली एवं सदाचारवान् पुरुषों की माता के समान (ऋतस्य) सत्य व्यवस्था धर्म और न्याय के ( पत्नीम् ) पालन करने वाली (तुविक्षत्राम् ) बहुत से क्षत्र बल से युक्त, ( अजरन्तीम् ) कभी नाश न होने वाली, सदा नूतन-नूतन सभासदों से बनी, ( उरुचीम् ) विशाल राष्ट्र के शासक रूप से व्यापक ( सुशर्माणम् ) उत्तम गृह, सभाभवन में विद्यमान, उत्तम सुख देने वाली ( सुप्रणीतिम् ) उत्तम, सुखकारी नीति, राजनीतिक प्रगतियों वाली ( अदितिम् ) सदा अखण्ड शासन वाली, महासभा को (हुवेम ) स्वीकार- करें । इसी प्रकार जो उत्तम सदाचारी पुरुषों की माता (ऋत) अन्न, यज्ञ- और जीवन की मालिक वीरों से सुरक्षित सदा अजर, विस्तृत, सुखप्रद,. अखण्ड, उत्तम राष्ट्र को हम (हुवेम ) अपनावें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अदितिर्देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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