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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 52
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    दे॒वीऽऊ॒र्जा॑हुती॒ दुघे॑ सु॒दुघेन्द्रे॒ सर॑स्वत्य॒श्विना॑ भि॒षजा॑वतः। शु॒क्रं न ज्योति॒ स्तन॑यो॒राहु॑ती धत्तऽइन्द्रि॒यं व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वी इति॑ दे॒वी। ऊ॒र्ज्जाहु॑ती॒ इत्यू॒र्जाऽआहु॑ती। दुघे॒ इति॒ दुघे॑। सु॒दुघेति॑ सु॒ऽदुघा। इन्द्रे॑। सर॑स्वती। अ॒श्विना॑। भि॒षजा॑। अ॒व॒तः॒। शु॒क्रम्। न। ज्योतिः॑। स्तन॑योः। आहु॑ती॒ इत्याऽहु॑ती। ध॒त्त॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥५२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवीऽऊर्जाहुती दुघे सुदुघेन्द्रे सरस्वत्यश्विना भिषजावतः । शुक्रन्न ज्योति स्तनयोराहुती धत्तऽइन्द्रियमवसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवी इति देवी। ऊर्ज्जाहुती इत्यूर्जाऽआहुती। दुघे इति दुघे। सुदुघेति सुऽदुघा। इन्द्रे। सरस्वती। अश्विना। भिषजा। अवतः। शुक्रम्। न। ज्योतिः। स्तनयोः। आहुती इत्याऽहुती। धत्त। इन्द्रियम्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। व्यन्तु। यज॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 52
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    भावार्थ -
    (सरस्वती) स्त्री जिस प्रकार सायं प्रात: दोनों समय (इन्द्रे) अपने पति के लिये (देवी) उत्तम गुण वाली, मन को लुभाने वाली (ऊर्जाहुती) अन्न की थाली प्रदान करती है । उसी प्रकार (सरस्वती) विद्वत्सभा ( इन्द्रे) राजा के निमित्त (देवी) उत्तम गुणों वाली होकर (दुधे) -बलकारक (ऊर्जाहुती) अन्न और वीर्य की आहुतियों को प्रदान करती है । और ( सुदुधा) उत्तम रीति से समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले (अश्विना) दोनों अश्वी नामक अधिकारी (भिषजा) दो वैद्यों के समान (अवतः) इन्द्र, अर्थात् राजा और राज्य की रक्षा करते हैं। स्त्री जिस प्रकार (स्तनयोः शुक्रं न) स्तनों में दूध धारण करती हैं और प्राण और अपान जिस प्रकार शरीर में (ज्योतिः) कान्ति को या दिन रात्रि जिस प्रकार द्यौ और पृथिवी के बीच में कान्तिमान् (ज्योति) सूर्य को धारण करते हैं उसी प्रकार वे तीनों (ज्योतिः) तेज और पराक्रम को और (आहुती) अन्नाहुति और वीर्याहुति दोनों प्रकार की आहुतियों द्वारा (इन्द्रे इन्द्रियम् ) राजा और राष्ट्र में ऐश्वर्य और राजोचित्त बल (धत्त) धारण 'करावे । वे (वसुवने) राष्ट्र-सम्पत्ति के भोक्ता राष्ट्रपति के लिये (वसुधेयस्थ ) धन कोश को व्यन्तु प्राप्त करें । हे होतः ! उनको (यज) तू अधिकार प्रदान कर ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अतिजगती । निषादः ॥

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