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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 33
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
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    होता॑ यक्षद् ब॒र्हि॒रूर्ण॑म्रदा भि॒षङ् नास॑त्या भि॒षजा॒श्विनाश्वा॒ शिशु॑मती भि॒षग्धे॒नुः सर॑स्वती भि॒षग्दु॒हऽइन्द्रा॑य भेष॒जं पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रु॒ता घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। ब॒र्हिः। ऊर्ण॑म्रदा॒ इत्यूर्ण॑ऽम्रदाः। भि॒षक्। ना॑सत्या। भि॒षजा॑। अ॒श्विना॑। अश्वा॑। शिशु॑म॒तीति॒ शिशु॑ऽमती। भि॒षक्। धे॒नुः। सर॑स्वती। भि॒षक्। दु॒हे। इन्द्रा॑य। भे॒ष॒जम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रु॒तेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षद्बर्हिरूर्णम्रदा भिषङ्नासत्या भिषजाश्विनाश्वा शिशुमती भिषग्धेनुः सरस्वती भिषग्दुहऽइन्द्राय भेषजम्पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। बर्हिः। ऊर्णम्रदा इत्यूर्णऽम्रदाः। भिषक्। नासत्या। भिषजा। अश्विना। अश्वा। शिशुमतीति शिशुऽमती। भिषक्। धेनुः। सरस्वती। भिषक्। दुहे। इन्द्राय। भेषजम्। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 33
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    भावार्थ -
    (होता) उक्त 'होता', पदाधिकारी, पुरुषों का नियोक्ता नाना -दोषों को दूर करने के साधन और उपाय ( यक्षत् ) प्राप्त करे । ( १ ) (बहि ऊर्णप्रदाः भिषक ) ऊन जैसे शरीर की शीत से रक्षा करती है उसी प्रकार (बर्हि ऊम्रदाः) प्रजा राजा और राष्ट्र की कम्बल के समान - रक्षाकारी होकर ( भिषक् ) उसकी त्रुटियों को दूर करे । (२) ( नासत्या अश्विना भिषजा ) कभी असत्य व्यवहार न करने हारे, सदा सत्यप्रेमी 'पूर्वोक्त दो अधिकारी भी वैद्यों के समान राष्ट्र के असद्-व्यवहारों को दूर करें। (अश्वा) वेगवती घोड़ी के समान तीव्र बुद्धि अथवा हृदयग्राहिणी और (शिशुमती) उत्तम बालकों से युक्त (धेनुः) गौ के समान मधुर रस देने वाली विदुषी स्त्री राजा और राष्ट्र के दोषों को (भिषग) दूर करे और " (सरस्वती) सरस्वती, विदुषी स्त्री और विद्वत्सभा भी ( भिषग् ) नाना दोषों को दूर करे | ये सब (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् राष्ट्र और राजा के लिये (भेषजम् ) ओषधि रसों के समान नाना उपाय ( दुहे ) प्रदान करें। ( पयः- सोमः ० इत्यादि) पूर्ववत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - निचृदष्टिः । मध्यमः ॥

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