यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 24
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
1
ग्र॒ीष्मेण॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वा रु॒द्राः प॒ञ्च॒द॒शे स्तु॒ताः।बृ॒ह॒ता यश॑सा॒ बल॑ꣳह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः॥२४॥
स्वर सहित पद पाठग्री॒ष्मेण॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। रुद्राः। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शे। स्तु॒ताः। बृ॒ह॒ता। यश॑सा। बल॑म्। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ग्रीष्मेणऽऋतुना देवा रुद्राः पञ्चदशे स्तुताः । बृहता यशसा बलँ हविरिन्द्रे वयो दधुः ॥
स्वर रहित पद पाठ
ग्रीष्मेण। ऋतुना। देवाः। रुद्राः। पञ्चदश इति पञ्चऽदशे। स्तुताः। बृहता। यशसा। बलम्। हविः। इन्द्रे। वयः। दधुः॥२४॥
विषय - संवत्सर के ६ ऋतु भेद से यज्ञ प्रजापति और प्रजापालक राजा के ६ स्वरूपों का वर्णन ।
भावार्थ -
(रुद्राः देवाः) रुद्र नामक देव, विद्वान् गण, (ग्रीष्मेण ऋतुना) ग्रीष्म ऋतु से (पञ्चदशे) पंचदश नामक स्तोम के आधार पर (बृहता ) बृहत् नामक साम से (यशसा) और यश से (इन्द्रे) इन्द्र राजा और राष्ट्र में (बलं जय: हविः दधुः) बल दीर्घायु और अन्नादि ऐश्वर्य धारण कराते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
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