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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 43
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः देवता - वास्तुपतिर्देवता छन्दः - भूरिक् जगती, स्वरः - निषादः
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    उप॑हूताऽइ॒ह गाव॒ऽउप॑हूताऽअजा॒वयः॑। अथो॒ऽअन्न॑स्य की॒लाल॒ऽउप॑हूतो गृ॒हेषु॑ नः। क्षेमा॑य वः॒ शान्त्यै॒ प्रप॑द्ये शि॒वꣳ श॒ग्मꣳ शं॒योः शं॒योः॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑हूता॒ इत्युप॑ऽहूताः। इ॒ह। गावः॑। उप॑हूता॒ इत्युप॑ऽहूताः। अ॒जा॒वयः॑। अथो॒ऽइत्यथो॑। अन्न॑स्य। की॒लालः॑। उप॑हूत॒ इत्युप॑ऽहूतः। गृ॒हेषु॑। नः॒। क्षेमा॑य। वः॒। शान्त्यै॑। प्र॒। प॒द्ये॒। शि॒वम्। श॒ग्मम्। शं॒योरिति॑ श॒म्ऽयोः॑। शं॒योरिति॑ श॒म्ऽयोः॑ ॥४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूता इह गाव उपहूता अजावयः । अथो अन्नस्य कीलाल उपहूतो गृहेषु नः । क्षेमाय वः शान्त्यै प्र पद्ये शिवँ शग्मँ शम्योः शम्योः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपहूता इत्युपऽहूताः। इह। गावः। उपहूता इत्युपऽहूताः। अजावयः। अथोऽइत्यथो। अन्नस्य। कीलालः। उपहूत इत्युपऽहूतः। गृहेषु। नः। क्षेमाय। वः। शान्त्यै। प्र। पद्ये। शिवम्। शग्मम्। शंयोरिति शम्ऽयोः। शंयोरिति शम्ऽयोः॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 43
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    भावार्थ -

     ( इह ) यहाँ, राष्ट्र में और गृह में ( गावः ) दुधार गौवें उपहूताः ) हमें प्राप्त हों । ( अजावयः उपहृताः ) बकरियां और भेड़े प्राप्त हों । (अन्नस्य ) प्राण धारण करने में समर्थ भोग्य पदार्थों में से ( कीलालः) उत्तम मन आदि पदार्थ (नः) हमारे (गृहेषु ) घरों में ( उपहूतः ) प्राप्त हो ।| हे गृहो ! गृहस्थ पुरुषों ! ( वः ) तुम लोगों के पास मैं ( क्षेमाय ) आप लोगों की कुशल क्षेम, रक्षा के लिये और (शान्त्यै ) विघ्नों और विघ्नकारियों को शान्त करने और सुख प्रदान करने के लिये ( प्रपद्ये ) तुम्हें प्राप्त होऊं । (शयोः शंयोः ) सुख शान्तिदायक, प्रत्येक उपाय से ( शिवम् शग्मम् ) कल्याण और सुख ही प्राप्त हो ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः । वास्तुपतिर्देवता ! भुरिग् जगती । निषादः ॥

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