यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 53
ऋषिः - बन्धुर्ऋषिः
देवता - मनो देवता
छन्दः - अतिपाद निचृत् गायत्री,
स्वरः - षड्जः
1
मनो॒ न्वाह्वा॑महे नाराश॒ꣳसेन॒ स्तोमे॑न। पि॒तॄ॒णां च॒ मन्म॑भिः॥५३॥
स्वर सहित पद पाठमनः॑। नु। आ। ह्वा॒म॒हे॒। ना॒रा॒श॒ꣳसेन॑। स्तोमे॑न। पि॒तॄ॒णाम्। च॒। मन्म॑भि॒रिति॒ मन्म॑ऽभिः ॥५३॥
स्वर रहित मन्त्र
मनो न्वाह्वमहे नाराशँसेन स्तोमेन । पितऋृणाञ्च मन्मभिः ॥
स्वर रहित पद पाठ
मनः। नु। आ। ह्वामहे। नाराशꣳसेन। स्तोमेन। पितॄणाम्। च। मन्मभिरिति मन्मऽभिः॥५३॥
विषय - मानस शक्ति की वृद्धि के उपाय।
भावार्थ -
( नाराशंसेन ) विद्वान् नेता मनुष्यों के कथाप्रवचन सम्बन्धी ( स्तोमेन ) गुणानुवाद से और ( पितृणां च ) पालन करने वाले ज्ञानी गुरु-जनों के ( मन्मभिः ) ज्ञानसाधन, प्रमाणों या मनन करने योग्य मन्तव्यों द्वारा हम लोग ( मनः ) मन को, अपने ज्ञान और संकल्प विकल्प करने वाले अन्तःकरण की शक्ति को ( आह्नामहे ) बढ़ावें । बड़े पुरुषों के जीवनों और अनुभवों और उनके युक्ति परम्परा और ज्ञानमय उपदेशों से हम अपने ज्ञान को बढ़ावें।शत० २ । ६ । १ । ३९ ॥
टिप्पणी -
५३ - ० न्वाहुयामहे ० इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
बन्धुःऋषिः । मनो देवता । अतिपाद् निचृद् गायत्री । षड्जः ॥
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