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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 62
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    त्र्या॒यु॒षं ज॒म॑दग्नेः क॒श्यप॑स्य त्र्यायु॒षम्। यद्दे॒वेषु॑ त्र्यायु॒षं तन्नो॑ऽअस्तु त्र्यायु॒षम्॥६२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्र्या॒यु॒षमिति॑ त्रिऽआयु॒षम्। ज॒मद॑ग्नेरिति॑ ज॒मत्ऽअ॑ग्नेः। क॒श्यप॑स्य। त्र्या॒यु॒षमिति॑ त्रिऽआयु॒षम्। यत्। दे॒वेषु॑। त्र्या॒यु॒षमिति॑ त्रिऽआयु॒षम्। तत्। नः॒। अ॒स्तु॒। त्र्या॒यु॒षमिति॑ त्रिऽआयु॒षम् ॥६२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्र्यायुषञ्जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम् । यद्देवेषु त्र्यायुषन्तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्र्यायुषमिति त्रिऽआयुषम्। जमदग्नेरिति जमत्ऽअग्नेः। कश्यपस्य। त्र्यायुषमिति त्रिऽआयुषम्। यत्। देवेषु। त्र्यायुषमिति त्रिऽआयुषम्। तत्। नः। अस्तु। त्र्यायुषमिति त्रिऽआयुषम्॥६२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 62
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    भावार्थ -

     ( जमदग्ने: ) नित्य प्रज्वलित, तीव्र जाठर अग्नि से युक्त या देदीप्यमान चक्षु चाले पुरुष को जो (त्र्यायुषम् ) तिगुणी आयु प्राप्त होती है और ( कश्यपस्य) कश्य अर्थात् ज्ञान के पालक पुरुष को जो ( त्रि-आयुषम् ) त्रिगुण आयु प्राप्त होती है ( यत् ) और जो ( देवेषु ) देव, विद्वान् पुरुषों में (त्रि- आयुषम् ) त्रिगुण आयु है ( तत् ) वह ( त्रि-आयुषम् ) त्रिगुण आयु ( नः अस्तु ) हमें भी प्राप्त हो ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    नारायण ऋषिः । अग्निर्देवता । ऊष्णिक् । ऋषभः॥

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