यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 13
ऋषिः - भरद्वाज ऋषिः
देवता - इन्द्राग्नी देवते
छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्,
स्वरः - धैवतः
1
उ॒भा वा॑मिन्द्राग्नीऽआहु॒वध्या॑ऽउ॒भा राध॑सः स॒ह मा॑द॒यध्यै॑। उ॒भा दा॒तारा॑वि॒षा र॑यी॒णामु॒भा वाज॑स्य सा॒तये॑ हुवे वाम्॥१३॥
स्वर सहित पद पाठउ॒भा। वा॒म्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ऽइती॑न्द्राग्नी। आ॒हु॒वध्या॒ऽइत्या॑ऽहु॒वध्यै॑। उ॒भा। राध॑सः। स॒ह। मा॒द॒यध्यै॑। उ॒भा। दा॒तारौ॑। इ॒षाम्। र॒यी॒णाम्। उ॒भा। वाज॑स्य। सा॒तये॑। हु॒वे। वा॒म् ॥१३॥
स्वर रहित मन्त्र
उभा वामिन्द्राग्नीऽआहुवध्याऽउभा राधसः सह मादयध्यै । उभा दाताराविषाँ रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
उभा। वाम्। इन्द्राग्नीऽइतीन्द्राग्नी। आहुवध्याऽइत्याऽहुवध्यै। उभा। राधसः। सह। मादयध्यै। उभा। दातारौ। इषाम्। रयीणाम्। उभा। वाजस्य। सातये। हुवे। वाम्॥१३॥
विषय - विद्युत् अग्नि तथा राजा और सेना नायक दोनों का वर्णन।
भावार्थ -
-हे ( इन्द्र-अग्नी ) इन्द्र और अग्ने ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् राजन् ! हे (अग्ने) शत्रुसंतापक अग्ने !अग्रणी ! सेना नायक ! (वाम् उभा ) तुम दोनों को ( आहुवध्यै ) अपने पास बुलाने के लिये और ( उभा ) दोनों को ( राधसः ) नाना ऐश्वर्य के द्वारा ( सह ) एकत्र ( मादयध्यै ) आनन्द लाभ करने के लिये ( हुवे ) मैं बुलाता हूं। ( उभा ) तुम दोनों (इषाम्) अन्नों और ( रयीणाम् ) ऐश्वर्यो के ( दातारौ ) प्रदान करने वाले हैं । ( उभौ आप दोनों को ( वाजस्य ) उत्तम अन्न के ( सातये ) प्राप्ति और भोग के लिये ( वाम् ) तुम दोनों के ( हुवे ) बुलाता हूं। दोनों को आदरपूर्वक स्वीकार करता हूं । विद्युत् अग्नि के पक्ष में- परस्पर के बुलाने, वार्तालाप, दूरस्थ देश से सन्देश आदि देने और धनैश्वर्य के परस्पर मिलकर भोग करने के लिये समस्त कामनाओं और ऐश्वर्यों के प्रदाता वीर्यवान्, या बलयुक्त कार्यों की सिद्धि के लिये अग्नि और विद्युत् शक्तियों को मैं ( हुवे ) स्वयं अपने वश करता हूं ॥ शत० २ | ३ | ४ | १२ ॥ अथवा, इन्द्र = सूर्य और अग्नि ॥
टिप्पणी -
१३ – ० दातारा इषां' इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
भरद्वाज ऋषिः । इन्द्राग्नी देवते । स्वराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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