यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 44
प्र॒घा॒सिनो॑ हवामहे म॒रुत॑श्च रि॒शाद॑सः। क॒र॒म्भेण॑ स॒जोष॑सः॥४४॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒घा॒सिन॒ इति॑ प्रऽघा॒सिनः॑। ह॒वाम॒हे॒। म॒रुतः॑। च॒। रि॒शाद॑सः। क॒र॒म्भेण॑। स॒जोष॑स॒ इति॑ स॒ऽजोष॑सः ॥४४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रघासिनो हवामहे मरुतश्च रिशादसः । करम्भेण सजोषसः ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रघासिन इति प्रऽघासिनः। हवामहे। मरुतः। च। रिशादसः। करम्भेण। सजोषस इति सऽजोषसः॥४४॥
विषय - उत्तम विद्वानों का आमन्त्रण ।
भावार्थ -
हम लोग ( प्रघासिनः ) उत्तम अन्न के भोजन करने हारे ( रिशादसः ) हिंसकों के विनाशक और ( करम्भेण ) उत्तम कर्म करने हारे पुरुष के साथ ( सजोषसः ) प्रेम करने वाले ( मरुतः ) विद्वान्, शूरवीर प्रजा के पुरुषों को ( हवामहे) अपने घरों पर बुलावें, निमन्त्रित करें अथवा ( करम्भेण सजोषसः ) करम्भ = यवमय अन्न से तृप्त होने वाले पुरुषों को अपने यहां बुलावें ॥ शत० २ । ४ । २ । २१ ॥
टिप्पणी -
४४-- अथातश्चातुर्मास्यमन्त्राः या अध्यायपरिसमाप्तेः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
[४४-६३] प्रजापतिःऋषिः । मरुतो देवता । गायत्री । षड्जः ॥
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