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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 52
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराट् पङ्क्ति, स्वरः - पञ्चमः
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    सु॒स॒न्दृशं॑ त्वा व॒यं मघ॑वन् वन्दिषी॒महि॑। प्र नू॒नं पू॒र्णब॑न्धुर स्तु॒तो या॑सि॒ वशाँ॒२ऽअनु॒ योजा॒ न्विन्द्र ते॒ हरी॑॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒सं॒दृश॒मिति॑ सुऽसं॒दृश॑म्। त्वा॒। व॒यम्। मघ॑व॒न्निति॒ मघ॑ऽवन्। व॒न्दि॒षी॒महि॑। प्र। नू॒नम्। पू॒र्णब॑न्धुर॒ इति॑ पू॒र्णऽब॑न्धुरः। स्तु॒तः। या॒सि॒। वशा॑न्। अनु॑। योज॑। नु। इ॒न्द्र॒। ते॒। हरी॒ऽइति॒ हरी॑ ॥५२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुसन्दृशं त्वा वयम्मघवन्वन्दिषीमहि । प्र नूनम्पूर्णबन्धुर स्तुतो यासि वशाँ अनु योजा न्विन्द्र ते हरी ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुसंदृशमिति सुऽसंदृशम्। त्वा। वयम्। मघवन्निति मघऽवन्। वन्दिषीमहि। प्र। नूनम्। पूर्णबन्धुर इति पूर्णऽबन्धुरः। स्तुतः। यासि। वशान्। अनु। योज। नु। इन्द्र। ते। हरीऽइति हरी॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 52
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    भावार्थ -

    हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यचन् ! ( सुसंदृशम् ) उत्तम रूप से सब को देखने हारे (त्वा) तुझको ( वयं ) हम ( वन्दिषीमहि ) अभिवादन करते हैं। तू ( पूर्णबन्धुरः ) पूर्ण रूप से सबका पालने हारा, एवं सबको व्यवस्था में रखने हारा होकर ( स्तुतः ) सबसे प्रशंसित होकर ( नूनम् ) निश्चय से ( वशान् अनु ) कामना योग्य समस्त पदार्थों को ( प्रयासि ) प्राप्त कर और हे ( इन्द्र ) राजन् ! तू अपने ( हरी ) रथ में अश्वों के समान दूरगामी एवं नाना पदार्थ प्राप्त कराने वाले बल पराक्रम दोनों को ( योज नु ) नियुक्त कर । अर्थात् जिस प्रकार रथ पर सब उपकरण लगा कर ही अपने घोड़े जोड़ता है, उसी प्रकार राष्ट्र में सब व्यवस्था करके अपने बल पराक्रम का प्रयोग कर । शत० २ । ६ । १ । ३३ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    गोतमो राहूगण ऋषि: । इन्द्रो देवता । विराट् पंक्तिः । पञ्चमः स्वरः ॥

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