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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 85
नमो॑ वः पितरःस्व॒धा वः॑ पितरः ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । स्व॒धा । व॒: । पि॒त॒र॒: ॥४.८५॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो वः पितरःस्वधा वः पितरः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । व: । पितर: । स्वधा । व: । पितर: ॥४.८५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 85
विषय - देवयान और पितृयाण।
भावार्थ -
हे (पितरः) पालक पुरुषो ! (वः ऊर्जे नमः) अन्नादि परम रस के निमित्त हम आप लोगों का आदर करते हैं। (वः) आपलोगों के निमित्त (रसाय) ओषधि आदि रसका (नमः) आदर करते हैं। हे (पितरः) पालक पुरुषो ! (वः भामाय नमः) आपलोगों के क्रोध का हम आदर करते हैं (वः मन्यवेः नमः) आप लोगों की मानस असहिष्णुता का भी हम आदर करते हैं। हे (पितरः २) पालक पुरुषो (वः यद्) आपलोगों का जो (घोरम्) भयंकर कार्य है (तस्मै नमः) उसका भी हम आदर करते हैं। (यत् वः क्रूरं तस्मै नमः) जो आपका युद्ध आदि के अवसर पर क्रूर शत्रुहिंसा आदि कर्म है उसका भी हम आदर करते हैं। हे (पितरः पितरः) प्रजा के पालक पुरुषो ! (वः यत् शिवम् तस्मै नमः) आपलोगों का जो शिव, मङ्गल कल्याणकारी कार्य है उसका हम आदर करते हैं। (वः यत् स्योनं तस्मै नमः) आप लोगों का जो प्रजाको सुख पहुंचाने वाला कार्य है उसका हम आदर करते हैं। हे (पितरः २) परालक पुरुषो ! (वः नमः) आपलोगों का हम आदर करते हैं और (वः स्वधा) आप लोगों के निमित्त शरीर पोषक यह अन्न प्रदान करते हैं।
टिप्पणी -
नमो वः पितरो रसाय, नमो वः पितरः शोषाय, नमा वः पितरो जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरो घोराय, नमो वः पितरो मन्यवे, नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्तः पितरो दत्त सता वः पितरो देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त॥ इति यजु०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥
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