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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 74
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    य॒माय॑ पितृ॒मते॑स्व॒धा नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑ । पि॒तृऽम॑ते । स्व॒धा । नम॑: ॥४.७४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय पितृमतेस्वधा नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय । पितृऽमते । स्वधा । नम: ॥४.७४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 74

    भावार्थ -
    (कव्यवाहनाय) विद्वान्, मेधावी पुरुषों के हितकारी पदार्थों को प्राप्त करने वाले (अग्नये) अग्रणी, नेता पुरुष का हम (स्वधा) अपने देह के पोषक पदार्थ स्वधा=अन्न, द्वारा (नमः) आदर करते हैं (पितृमते सोमाय) राष्ट्रके पालक पितृगणों से युक्त, सबके प्रेरक सोम राजाका (स्वधा नमः) अन्न द्वारा हम आदर करते हैं। (सोमवद्भ्यः पितृभ्यः) सोम राजा से युक्त पालक पुरुषोंका (स्वधा नमः) अन्न द्वारा सत्कार करते हैं। (पितृमते यमाय स्वधा नमः) प्रजा पालक पुरुषों से युक्त नियन्ता, यम राजा का हम अन्न द्वारा सत्कार करते हैं ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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