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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 74
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    38

    य॒माय॑ पितृ॒मते॑स्व॒धा नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑ । पि॒तृऽम॑ते । स्व॒धा । नम॑: ॥४.७४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय पितृमतेस्वधा नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय । पितृऽमते । स्वधा । नम: ॥४.७४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 74
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पितरों के सन्मान का उपदेश।

    पदार्थ

    (पितृमते) श्रेष्ठमाता-पितावाले (यमाय) न्यायाधीश राजा को (स्वधा) अन्न (नमः) नमस्कार हो ॥७४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य हैकि विविध प्रकार के विद्वान् माननीय पुरुषों का अन्न आदि से सत्कार करके विविधशिक्षा ग्रहण करें ॥७१-७४॥मन्त्र ७१, ७२ कुछ भेद से यजुर्वेद में हैं−२।२९॥

    टिप्पणी

    ७४−(यमाय) न्यायाधीशाय राज्ञे (पितृमते) म० ७२। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    कव्यवाहन, पितृयान, सोमवान्

    पदार्थ

    १. अग्नि आदि देवताओं को अग्निहोत्र में दिया जानेवाला अन्न हव्य कहलाता है। पितरों को दिया जानेवाला अन्न-आदरपूर्वक उनके लिए परोसा जानेवाला अन्न कव्य। इस (कव्यवाहनाय) = कव्य को प्राप्त करानेवाले (अग्नये) = प्रगतिशील गृहस्थ के लिए (स्वधा) = आत्मधारण के लिए पर्याप्त अन्न हो तथा (नम:) = नमस्कार [आदर] हो। २. इस (पितृमते) = प्रशस्त पितरोंवाले बड़ों का आदर करनेवाले (सोमाय) = सौम्य स्वभाव गृहस्थ के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो। ३. (सोमवद्भ्यः) = इन सौम्य सन्तानोंवाले-सोम का रक्षण करनेवाले सन्तानों से युक्त (पितृभ्यः) = पितरों के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो। ४. इस (पितृमते) = प्रशस्त पितरोंवाले (यमाय) = संयत जीवनवाले गृहस्थ के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो।

    भावार्थ

    एक सद्गृहस्थ को पितरों के लिए आवश्यक अन्न प्रास करानेवाला बनना चाहिए। वह सौम्य स्वभाव हो। सोम का [वीर्य का] अपने अन्दर रक्षण करनेवाला हो। संयत जीवनवाला हो। इस गृहस्थ को अन्न-रस की कमी नहीं रहती तथा उचित आदर प्राप्त होता |

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    भाषार्थ

    (पितृमते) पिता के सदृश रक्षक आचार्य वाले, (यमाय)१ यमनियमों के पालक तथा संयमवाले ब्रह्मचारी के लिए (स्वधा नमः) आत्म-धारण-पोषणकारी सात्त्विक अन्न देना चाहिए।

    टिप्पणी

    [पितृमते=जननी जनकश्चैव यश्च विद्यां प्रयच्छति। अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृताः॥ इसलिए विद्यादाता आचार्य भी पिता है।] [१. इसी प्रकार यमनियमों के पालन करने वाले ब्रह्मचारी को भी सात्त्विकाहार वाला होना चाहिए। सात्त्विक-आहार ब्रह्मचर्य के पालन में सहायक होता है। उन के वनस्थ गुरुओं को भी सात्त्विकाहारी होना चाहिए।]

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    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    (कव्यवाहनाय) विद्वान्, मेधावी पुरुषों के हितकारी पदार्थों को प्राप्त करने वाले (अग्नये) अग्रणी, नेता पुरुष का हम (स्वधा) अपने देह के पोषक पदार्थ स्वधा=अन्न, द्वारा (नमः) आदर करते हैं (पितृमते सोमाय) राष्ट्रके पालक पितृगणों से युक्त, सबके प्रेरक सोम राजाका (स्वधा नमः) अन्न द्वारा हम आदर करते हैं। (सोमवद्भ्यः पितृभ्यः) सोम राजा से युक्त पालक पुरुषोंका (स्वधा नमः) अन्न द्वारा सत्कार करते हैं। (पितृमते यमाय स्वधा नमः) प्रजा पालक पुरुषों से युक्त नियन्ता, यम राजा का हम अन्न द्वारा सत्कार करते हैं ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Homage, food and reverence, to Yama, man of law and justice dedicated to parents and seniors.

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    Translation

    To Yama with the Fathers, svadha (and) homage.

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    Translation

    Let there be praise and oblation for Yama, the Air which mediates rays.

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    Translation

    Offerings of respect and rich food to the controller of men, coming with the elders.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७४−(यमाय) न्यायाधीशाय राज्ञे (पितृमते) म० ७२। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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