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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 68
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    39

    ये॒स्माकं॑पि॒तर॒स्तेषां॑ ब॒र्हिर॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒स्माक॑म् । पि॒तर॑: । तेषा॑म् । ब॒र्हि: । अ॒सि॒ ॥४.६८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येस्माकंपितरस्तेषां बर्हिरसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अस्माकम् । पितर: । तेषाम् । बर्हि: । असि ॥४.६८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 68
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    हिन्दी (4)

    विषय

    पितरों के सत्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो पुरुष (अस्माकम्) हमारे बीच (पितरः) पितर [ज्ञानी पुरुष] हैं, (तेषाम्) उनका [यहाँ] (बर्हिः) उत्तम आसन (असि) है ॥६८॥

    भावार्थ

    मनुष्य ध्यान रक्खेंकि सर्वहितकारी ज्ञानी पुरुष सदा प्रतिष्ठा पावें ॥६८॥

    टिप्पणी

    ६८−(ये) पुरुषाः (अस्माकम्) अस्माकं मध्ये (पितरः) पालका ज्ञानिनः (तेषाम्) पितॄणाम् (बर्हिः)उत्तमासनम् (असि) प्रथमस्य मध्यमपुरुषः। अस्ति। भवति ॥

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    विषय

    घर-पितरों का बर्हि

    पदार्थ

    १. गृहस्थ को चाहिए कि वह घर को सम्बोधन करता हुआ यही कहे कि हे गृह! (ये) = जो (अस्माकम्) = हमारे (पितर:) = पितर हैं, तू तेषाम्-उनका (बर्हिः असि) = आसन है। समय-समय पर जब कभी वे आएँ तब यहाँ वे आदरपूर्वक बिठाये जाएँ। २. 'बहिंस' का अर्थ [Light] 'प्रकाश' भी है। हमारा घर पितरों के प्रकाशवाला हो। पितरों से दी गई प्रेरणाएँ हमें प्रकाश दें-उस प्रकाश में हम ठीक मार्ग का आक्रमण करनेवाले हों।

    भावार्थ

    घरों में पितरों का आदर हो। उनकी सत्प्रेरणाएँ हमारे लिए प्रकाश देकर मार्गदर्शन करानेवाली हों।

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    भाषार्थ

    हे दर्शनीय आश्रम! [लोक, मन्त्र ६७] तू (तेषाम्) उन्हें (बर्हिः) आध्यात्मिक आदि दृष्टि से बढ़ानेवाला (असि) है, (ये) जो कि (अस्माकम्) हमारे (पितरः) पितर हैं॥ ६८॥

    टिप्पणी

    [लोक—लोकृ दर्शने। बर्हिः=बृह वृद्धौ। पितृषदन=विद्या पढ़े हुए ज्ञानी लोगों का स्थान (यजुः० ५.२६; दयानन्दभाष्य)।]

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    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    (ये) जो (अस्माकं) हमारे (पितरः) पूज्य पालक गुरुजन हैं हे आसन ! तू (तेषां) उनके (बर्हिः असि) वृद्धि को प्राप्त कराने वाला, प्रतिष्ठा का आसन है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    All those our father figures, seniors and sages who are among us, here is the seat and sustenance for them.

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    Translation

    Thou art the barhis of them that are our Fathers.

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    Translation

    This is the seat of those who are our elders.

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    Translation

    Thou art the honored seat for those who are our respectable elders or preceptors.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६८−(ये) पुरुषाः (अस्माकम्) अस्माकं मध्ये (पितरः) पालका ज्ञानिनः (तेषाम्) पितॄणाम् (बर्हिः)उत्तमासनम् (असि) प्रथमस्य मध्यमपुरुषः। अस्ति। भवति ॥

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