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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 71
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    47

    अ॒ग्नये॑कव्य॒वाह॑नाय स्व॒धा नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नये॑ । क्र॒व्य॒ऽवाह॑नाय । स्व॒धा । नम॑:॥४.७१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नयेकव्यवाहनाय स्वधा नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नये । क्रव्यऽवाहनाय । स्वधा । नम:॥४.७१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 71
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    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के सन्मान का उपदेश।

    पदार्थ

    (कव्यवाहनाय)बुद्धिमानों को हितकारी पदार्थों के पहुँचानेवाले (अग्नये) विद्वान् पुरुष को (स्वधा) अन्न और (नमः) नमस्कार होवे ॥७१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य हैकि विविध प्रकार के विद्वान् माननीय पुरुषों का अन्न आदि से सत्कार करके विविधशिक्षा ग्रहण करें ॥७१-७४॥मन्त्र ७१, ७२ कुछ भेद से यजुर्वेद में हैं−२।२९॥

    टिप्पणी

    ७१−(अग्नये) विदुषेपुरुषाय (कव्यवाहनाय) कविर्मेधाविनाम-निघ० ३।१५। कविभ्यो मेधाविभ्योहितपदार्थानां प्रापकाय (स्वधा) अन्नम् निघ० २।७ (नमः) सत्करणम् ॥

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    विषय

    कव्यवाहन, पितृयान, सोमवान्

    पदार्थ

    १. अग्नि आदि देवताओं को अग्निहोत्र में दिया जानेवाला अन्न हव्य कहलाता है। पितरों को दिया जानेवाला अन्न-आदरपूर्वक उनके लिए परोसा जानेवाला अन्न कव्य। इस (कव्यवाहनाय) = कव्य को प्राप्त करानेवाले (अग्नये) = प्रगतिशील गृहस्थ के लिए (स्वधा) = आत्मधारण के लिए पर्याप्त अन्न हो तथा (नम:) = नमस्कार [आदर] हो। २. इस (पितृमते) = प्रशस्त पितरोंवाले बड़ों का आदर करनेवाले (सोमाय) = सौम्य स्वभाव गृहस्थ के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो। ३. (सोमवद्भ्यः) = इन सौम्य सन्तानोंवाले-सोम का रक्षण करनेवाले सन्तानों से युक्त (पितृभ्यः) = पितरों के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो। ४. इस (पितृमते) = प्रशस्त पितरोंवाले (यमाय) = संयत जीवनवाले गृहस्थ के लिए (स्वधा नम:) = अन्न व आदर हो।

    भावार्थ

    एक सद्गृहस्थ को पितरों के लिए आवश्यक अन्न प्रास करानेवाला बनना चाहिए। वह सौम्य स्वभाव हो। सोम का [वीर्य का] अपने अन्दर रक्षण करनेवाला हो। संयत जीवनवाला हो। इस गृहस्थ को अन्न-रस की कमी नहीं रहती तथा उचित आदर प्राप्त होता |

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    भाषार्थ

    (अग्नये) प्रजाजन को जीवनमार्ग पर आगे ले जानेवाले (कव्यवाहनाय) मेधावियों के लिए मेधावर्धक ज्ञान के वाहनभूत विद्वान् के लिए (स्वधा नमः) आत्म-धारण-पोषणकारी तथा मेधावर्धक अन्न देना चाहिए।

    टिप्पणी

    [अग्निः अग्रणीर्भवति (निरु० ७.४.१४), अर्थात् आगे ले जानेवाला। कव्य=कविः मेधाविनाम (निघं० ३.१५), तेभ्यो हितं कव्यम्=मेधावियों के लिए मेधावर्धक ज्ञान। स्वधा=स्वधारण-पोषणकारी। नमः=अन्ननाम (निघं॰ २.७)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Homage and food for Agni, leading light of life and inspirer of reason, imagination and vision.

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    Translation

    To Agni, carrier of the kavyas, (be) svadha (and) homage.

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    Translation

    Let there be praise and oblation for Agni, the fire which is the bearer of oblattons,

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    Translation

    Respect and vitalizing food to the leader, who provides proper provisions to the learned and the intelligent people.

    Footnote

    (71-74) These verses lay down the duty of the general people to honor their king and the learned and the elders with rich food and respectful homage also see Yajur, 2,29.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७१−(अग्नये) विदुषेपुरुषाय (कव्यवाहनाय) कविर्मेधाविनाम-निघ० ३।१५। कविभ्यो मेधाविभ्योहितपदार्थानां प्रापकाय (स्वधा) अन्नम् निघ० २।७ (नमः) सत्करणम् ॥

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