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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 46
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    45

    सर॑स्वतींपि॒तरो॑ हवन्ते दक्षि॒णा य॒ज्ञम॑भि॒नक्ष॑माणाः। आ॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑मादयध्वमनमी॒वा इष॒ आ धे॑ह्य॒स्मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर॑स्वतीम् । पि॒तर॑: । ह॒व॒न्ते॒ । द॒क्षि॒णा । य॒ज्ञम् । अ॒भि॒ऽनक्ष॑माणा: । आ॒ऽसद्य॑ । अ॒स्मिन् । ब॒र्हिषि॑ । मा॒द॒य॒ध्व॒म् । अ॒न॒मी॒वा: । इष॑: । आ । धे॒हि॒ । अ॒स्मे इति॑ ॥४.४६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सरस्वतींपितरो हवन्ते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः। आसद्यास्मिन्बर्हिषिमादयध्वमनमीवा इष आ धेह्यस्मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सरस्वतीम् । पितर: । हवन्ते । दक्षिणा । यज्ञम् । अभिऽनक्षमाणा: । आऽसद्य । अस्मिन् । बर्हिषि । मादयध्वम् । अनमीवा: । इष: । आ । धेहि । अस्मे इति ॥४.४६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 46
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सरस्वती के आवाहन का उपदेश।

    पदार्थ

    (सरस्वतीम्) सरस्वती [विज्ञानवती वेदविद्या] को (दक्षिणा) सरल मार्ग में (यज्ञम्) यज्ञ [संयोगव्यवहार] को (अभिनक्षमाणाः) प्राप्त करते हुए (पितरः) पितर [पालन करनेवालेविज्ञानी] लोग (हवन्ते) बुलाते हैं। [हे विद्वानों !] (अस्मिन्) इस (बर्हिषि)वृद्धि कर्म में (आसद्य) आकर (मादयध्वम्) [सबको] तृप्त करो, [हे सरस्वती !] (अस्मे) हम में (अनमीवाः) पीड़ा रहित (इषः) इच्छाएँ (आ धेहि) स्थापित कर ॥४६॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोगनिर्विघ्न होकर सरल रीति में सबसे मिल कर वेदविद्या के प्रचार से विज्ञान कीवृद्धि और इष्ट पदार्थ की सिद्धि करते हैं ॥४६॥

    टिप्पणी

    ४५-४७−मन्त्राव्याख्याताः-अ० १८।१।४१-४३ ॥

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    विषय

    सरस्वती का आराधन

    पदार्थ

    व्याख्या देखो १८.१.४१-४३

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    भाषार्थ

    (पितरः) गृहस्थी-माता-पिता (दक्षिणायज्ञम्) दक्षिणा वाले यज्ञों को (अभिनक्षमाणाः) रचाते हुए, (सरस्वतीम्) ज्ञानमयी तथा सरसहृदया जगन्माता का, सहायतार्थ (हवन्ते) आह्वान करते हैं। हे गृहस्थ पितरो! (अस्मिन्) इस यज्ञ में (बर्हिषि) कुशासन पर (आसद्य) बैठ कर (मादयध्वम्) हम सबको आप हर्षित कीजिए। और (अनमीवाः) रोगरहित (इषः) अन्न (अस्मे) हमें (आधेहि) प्रदान कीजिए।

    टिप्पणी

    [दक्षिणायज्ञम्=गृहस्थी को ५ महायज्ञ करने होते हैं। इनमें ऋत्विजों की आवश्यकता नहीं होती है। ये महायज्ञ गृहस्थी को स्वयं करने होते हैं। इन महायज्ञों के साथ दक्षिणा का कोई सम्बन्ध नहीं। इन महायज्ञों के अतिरिक्त और भी नाना यज्ञ हैं, जिन में ऋत्विजों की आवश्यकता पड़ती है, और इनमें ऋत्विजों को दक्षिणाएँ देनी होती हैं। ये यज्ञ प्रजा के मानसिक आदि स्वास्थ्य और अन्न को गुणकारी और रोगरहित करने के लिए किये जाते हैं। इन यज्ञों में कुशासनों पर बैठने का विधान है। अथवा “दक्षिणाः यज्ञम्”=यज्ञ रचाते हुए और दक्षिणाएँ देते हुए।]

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    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो अथर्व० १८। ९। ४२। ४३॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Pitaras, parental seniors, invoke and adore Sarasvati when they organise and accomplish Dakshina yajna for simple and natural gifts of skill, knowledge and expertise. O lovers of yajna and knowledge, come, sit on this vedi and enjoy, and spread the joy of learning all round. O Mother, bless us with pure, uncontaminated, nourishing gifts of food and energy for body, mind and soul.

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    Translation

    On Sarasvati do the Fathers call, arriving at the sacrifice on the south; sitting on this barhis, do ye revel; assign thou to us food free from disease.

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    Translation

    The fore-fathers through dexterity accomplishing the Yajna praise the vedic knowledge and speech. O Ye people, you sitting in this Yajna enjoy pleasure. Give us the grain free from disease.

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    Translation

    The elders and the guardians of the land, sitting on the southern side of the sacrificial place call forth the Vedic lore and the lady of the house. O men, sitting in this great sacrificial place be happy and cheerful. O lady give us food free from all disease and illness.

    Footnote

    See 18.1.42 (शo 2.5.2.22).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४५-४७−मन्त्राव्याख्याताः-अ० १८।१।४१-४३ ॥

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