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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 33
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - उपरिष्टाद् बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    39

    ए॒तास्ते॑ असौधे॒नवः॑ काम॒दुघा॑ भवन्तु। एनीः॒ श्येनीः॒ सरू॑पा॒ विरू॑पास्ति॒लव॑त्सा॒ उप॑तिष्ठन्तु॒ त्वात्र॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ता: । ते॒ । अ॒सौ॒ । धे॒नव॑: । का॒म॒ऽदुघा॑: । भ॒व॒न्तु॒ । एनी॑: । श्येनी॑: । सऽरू॑पा: । विऽरू॑पा: । ति॒लऽव॑त्सा: । उप॑ । ति॒ष्ठ॒न्तु॒ । त्वा॒ । अत्र॑ ॥४.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतास्ते असौधेनवः कामदुघा भवन्तु। एनीः श्येनीः सरूपा विरूपास्तिलवत्सा उपतिष्ठन्तु त्वात्र ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एता: । ते । असौ । धेनव: । कामऽदुघा: । भवन्तु । एनी: । श्येनी: । सऽरूपा: । विऽरूपा: । तिलऽवत्सा: । उप । तिष्ठन्तु । त्वा । अत्र ॥४.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 33
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गोरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (असौ) हे अमुक पुरुष ! (ते) तेरी (एताः) यह (धेनवः) दुधेल गाएँ (कामदुघाः) कामधेनु। [कामना पूरीकरनेवाली] (भवन्तु) होवें। (एनीः) चितकबरी, (श्येनीः) धौली, (सरूपाः) एक सेरूपवाली, (विरूपाः) अलग-अलग रूपवाली, (तिलवत्साः) बड़े-बड़े बछड़ोंवाली [गौएँ] (अत्र) यहाँ (त्वा) तेरी (उप तिष्ठन्तु) सेवा करें ॥३३॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य गौओं की घासअन्न आदि से यथावत् सेवा करें, जिससे वे अभीष्ट घी, दूध, बड़े बछड़े आदि देकर उपकारकरती रहें और प्रीति बढ़ाने के लिये ऐसा प्रयत्न करें कि गौएँ और बछड़े अनेकरंगों और नामों के होवें ॥३३॥

    टिप्पणी

    ३३−(एताः) (ते) तव (असौ) हे अमुक पुरुष (धेनवः)दोग्ध्र्यो गावः (कामदुघाः) दुग्धघृतादिदानेन कामानां प्रपूरयित्र्यः (भवन्तु) (एनीः) कर्बूरवर्णाः (श्येनीः) श्वेतवर्णाः। धवलाः (सरूपाः) समानरूपाः (विरूपाः)विविधरूपाः (तिलवत्साः) तिलाः तिलकाः प्रधानाः शिशवो यासां ताः ॥

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    विषय

    गौवों का उपस्थान

    पदार्थ

    १. हे (असौ) = अमुक पुरुष! (एता:) = ये (ते धेनवः) = तेरी गौवें (कामदुघाः भवन्तु) = यथेष्ट दुग्ध देनेवाली हौं। २. ये (एनी:) = शुभ्रारुणवर्णवाली, (श्येनी:) = धवलवर्णवाली, (सरूपा:) = समानरूपवाली (विरूपा:) = विविधरूपोंवाली (तिलवत्सा:) = तिल के समान स्नेहयुक्त बछड़ोंवाली-स्निग्ध बछड़ोंवाली गौवें (अत्र) = यहाँ-इस जीवन में (त्वा उपतिष्ठन्तु) = तुझे समीपता से प्राप्त हों।

    भावार्थ

    हमारे लिए गौवें यथेष्ठ दुग्ध देनेवाली हों।

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    भाषार्थ

    (असौ) ओ सद्गृहस्थ! (एताः) ये (धेनवः) दुधार गौएँ (ते) तेरे लिए (कामदुघाः) कामना-कामना पर दूध देने वाली (भवन्तु) हों। (एनीः) चितकबरी, (श्येनीः) सुफेद, (सरूपाः) एक रंगवाली नाना, तथा (विरूपाः) विभिन्न-विभिन्न रूपों वाली नाना, (तिलवत्साः) नवजात छोटे-छोटे बछड़ों वाली वे गौएँ (त्वा) तुझे (अत्र) यहां=इस गृहस्थ में (उप तिष्ठन्तु) उपस्थित हों।

    टिप्पणी

    [तिलवत्साः=जैसे धाना और तिल का पारिमाणिक सम्बन्ध है, वैसे गौओं के साथ पारिमाणिक सम्बन्ध वाले बछड़े। इस दृष्टि से बछड़ों को “तिल” परिमाण का कहा है। बछड़े जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे गौओं का दूध भी कम होता जाता है। बछड़ों की तिलावस्था में गौओं में दूध की मात्रा अधिक होती है। अत्र=यहां, न कि वहां। ह्विटनी ने परलोक की भावना को सिद्ध करने के लिए “अत्र” का अर्थ किया है "There" अर्थात् वहां। तिलवत्साः=अथवा सम्भवतः वे बछड़े उत्तम नसल के होते हों, जिनके कि मस्तक पर तिल का सा चिह्न हो।]

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    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    हे पुरुष ! (एताः धेनवः) ये रसपान कराने हारी घेनुएं गौवें (ते) तेरे लिये (कामदुघाः भवन्तु) सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामदुघा हों। ये (एनीः) गेहुंऐ रंगकी कपिल और (श्येनीः) श्वेतवर्ण की, (सरूपाः) समानरूप की, (विरूपाः) विविध रूप की रहती हुई भी (तिलवत्साः) खीलों के साथ तिल के समान स्नेह युक्त छोटे छोटे बछड़ों वाली (त्वा) तुझे (अत्र) इस भूमि पर (उप तिष्ठन्तु) प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    (द्रि०) ‘मयन्ति’ इति सायणाभिमतः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Then, and thus, O man, these are your cows, let these be your givers of the fulfilment of desire : variegated, white, samely, different, with little calves having sesamum mole on the forehead. Let these be by you here in the home.

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    Translation

    Be these, O so-and-so, thy milch-kine that yield what is desired; variegated, white, of like form, of different form, with sesame as calf, let them wait upon thee there.

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    Translation

    O man, let these Dhenus the grains of corn, become the suppliers of all your desired ends and let these sesamum known as Anih, Shenib, Sarupah, Virupah and called as calves stand beside you.

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    Translation

    These cows may fulfill all thy desires. Mayst thou the wheatish, white khilan of the same color or different color with sesame as their calf.

    Footnote

    (33-34) In Indian life, a great significance is given to parched rice and sesame on all ceremonial occasions, due to their great qualities of nourishments. Thy: man’s: Thou: man. The verse 34 may equally be applied to the cows of various colors. In their case, ‘Tilwatsa’ would mean with calves, with qualities of attachment like sesame.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३३−(एताः) (ते) तव (असौ) हे अमुक पुरुष (धेनवः)दोग्ध्र्यो गावः (कामदुघाः) दुग्धघृतादिदानेन कामानां प्रपूरयित्र्यः (भवन्तु) (एनीः) कर्बूरवर्णाः (श्येनीः) श्वेतवर्णाः। धवलाः (सरूपाः) समानरूपाः (विरूपाः)विविधरूपाः (तिलवत्साः) तिलाः तिलकाः प्रधानाः शिशवो यासां ताः ॥

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