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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 17
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    39

    अ॑पू॒पवा॒न्दधि॑वांश्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पू॒पऽवा॑न् । दधि॑ऽवान् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒। ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥४.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपूपवान्दधिवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे येदेवानां हुतभागा इह स्थ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपूपऽवान् । दधिऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे। ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥४.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपूपवान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (दधिवान्) पुष्टिकारकपदार्थोंवाला (चरुः) चरु... [मन्त्र १६] ॥१७॥

    भावार्थ

    मन्त्र १६ के समान है॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(दधिवान्) आदॄगमहनजनः किकिनौ लिट् च। पा० ३।२।१७१। डुधाञ्धारणपोषणयोः-किन् प्रत्ययः। पोषकपदार्थयुक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

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    विषय

    यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन

    पदार्थ

    १. यज्ञों को करनेवाला पुरुष सदा यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन ही करता है। वह प्रभु से यही प्रार्थना करता है कि (इह) = यहाँ-हमारे घरों में (चरु:) = चरणीय-भक्षणीय-भोजन (आसीदतु) = हमें प्राप्त हो। यह भोजन (अपूपवान्) = [न पूयते न विशीर्यते] दुर्गन्धित रोटी से युक्त न हो तथा (क्षीरवान्) = दूध से युक्त हो, इसी प्रकार यह भोजन (दधिवान्) = दहीवाला हो। (द्रपस्वान्) = [diluted curd] छाछ आदिवाला हो। (घृतवान) = मांसवान् [leshy part of fruits]-घृत से तथा फलों के गूदे से युक्त हो। (अन्नवान्-मधुमान्) = अन्नवाला हो तथा शहदवाला हो। (रसवान-अपवान्) = रस से युक्त हो तथा जलोंवाला हो। ये ही हमारे भोज्यद्रव्य हों। २. इन उत्तम सात्विक भोजनों को करते हुए हम उन सत्पुरुषों के (यजामहे) = संग को प्राप्त हों जो (लोककृत:) = प्रकाश फेलानेवाले हैं-ज्ञानमार्ग को दिखलानेवाले हैं। (पथिकृतः) = कर्त्तव्यपथ का प्रतिपादन करते हैं और (वे) = जो (इह) = यहाँ-जीवन में (देवानां हुतभागा: स्थ) = देवों के हुत का सेवन करनेवाले हैं, अर्थात् यज्ञशील हैं और यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हमारा भोजन सात्त्विक हो और संग ज्ञानी, यज्ञशील पुरुषों के साथ हो।

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    भाषार्थ

    प्राजापत्ययाजी के जीवन-यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् भी (इह) इस घर में (चरुः) चावल, जौं आदि, तथा उसके साथ (अपूपवान्) पूड़े, और (दधिवान्) दही (आसीदतु) विद्यमान रहें, शेष पूर्ववत्।

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    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    (अपूपवान् दधिवान् चरुः इह आसीदतु) इस लोक में अपूप और दधिवाला चरु अन्न द्रव्य रक्खा जाय इत्यादि पूर्ववत् ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Let the holy vessel full of delicacies prepared with butter and curd be here on the vedi. O divine performers of yajna for the divinities, benefactors of the world and path makers of humanity, we invoke and adore you who stay here with us and partake of our offerings.

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    Translation

    Rich in cakes, rich in curds, let the dish etc. etc.

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    Translation

    Let the preparation enriched with Apup and curds rest here. We...present here.

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    Translation

    Enriched with cake and curds let abundant food be stored in this world. We worship the benefactors of humanity, and the exhibitors of the path of righteousness, who amongst the sages deserve to partake of these meals.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(दधिवान्) आदॄगमहनजनः किकिनौ लिट् च। पा० ३।२।१७१। डुधाञ्धारणपोषणयोः-किन् प्रत्ययः। पोषकपदार्थयुक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

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