अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 82
नमो॑ वः पितरो॒भामा॑य॒ नमो॑ वः पितरो म॒न्यवे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । भामा॑य । नम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । म॒न्यवे॑ ॥४.८२॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो वः पितरोभामाय नमो वः पितरो मन्यवे ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । व: । पितर: । भामाय । नम: । व: । पितर: । मन्यवे ॥४.८२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थ
(पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (भामाय) प्रताप की प्राप्ति के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कारहो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (मन्यवे) क्रोध की निवृत्ति के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो ॥८२॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥
टिप्पणी
८२−(भामाय)अर्त्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभा०। उ० १।१४०। भा दीप्तौ-मन्। भामं प्रकाशं प्रतापंप्राप्तुम् (मन्यवे) यथा म० ८१। मन्युं क्रोधं निवर्तयितुम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
पितरों के लिए 'स्वधा-व सत्कार'
पदार्थ
१. हे (पितर:) = पितरो! (वः कर्जे नमः) = आपके बल व प्राणशक्ति के लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो। (वः रसाय नमः) = आपकी वाणी में जो रस है उसके लिए हम नमस्कार करते हैं। २. हे (पितर:) = पितरो। (वः भामाय नम:) = आपकी तेजोदीसि के लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो! (व: मन्यवे नमः) = आपके ज्ञान [मन् अवबोधे] के लिए हम नमस्कार करते हैं। ३. हे (पितर:) = पितरो! (यत्) = जो (वः) = आपका (घोरम्) = शत्रुविनाशरूप हिंसात्मक कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए नमस्कार हो। हे (पितर:) = पितरो! (यत्) = जो (व:) = आपका (करम्) = निर्भयता पूर्ण शत्रुविच्छेदरूप कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए हम आदर करते हैं। ४. हे (पितरः) = पितरो! शत्रुविनाश द्वारा (यत्) = जो (व:) = आपका (शिवम्) = कल्याणकर कार्य है (तस्मै नमः) = उनके लिए हम नमस्कार करते हैं। निर्दयतापूर्वक पूर्णरूपेण शत्रुविनाश द्वारा (यत् वः स्योनम्) = जो आपका सुख प्रदानरूप कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए हम आपका आदर करते हैं। ५. हे (पितर:) = पितरो! (वः नमः) = आपके लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो! (वः स्वधः) = आपके शरीरधारण के लिए हम आवश्यक अन्न प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ
पितर बल व प्राणशक्ति सम्पन्न हैं, उनकी वाणी में रस है। वे तेजस्विता व ज्ञान की दीप्तिवाले हैं। शत्रुओं के लिए घोर व क्रूर हैं-काम, क्रोध आदि शत्रुओं के विनाश में दया नहीं करते। कल्याण व सुख को प्राप्त करानेवाले हैं। हम इनके लिए अन्न प्रास कराते हैं और इनका सत्कार करते हैं।
भाषार्थ
(पितरः) हे पितरो! (वः) आप की (भामाय) प्रभा=दीप्ति की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आपको नम्रभाव से प्राप्त होते हैं। (पितरः) हे पितरो! (वः) आपके (मन्यवे) मनन-पूर्वक किये गये क्रोध की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आपको नम्रभाव से प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी
[भामः=दीप्तिः (उणा० १.१४०)।]
विषय
देवयान और पितृयाण।
भावार्थ
हे (पितरः) पालक पुरुषो ! (वः ऊर्जे नमः) अन्नादि परम रस के निमित्त हम आप लोगों का आदर करते हैं। (वः) आपलोगों के निमित्त (रसाय) ओषधि आदि रसका (नमः) आदर करते हैं। हे (पितरः) पालक पुरुषो ! (वः भामाय नमः) आपलोगों के क्रोध का हम आदर करते हैं (वः मन्यवेः नमः) आप लोगों की मानस असहिष्णुता का भी हम आदर करते हैं। हे (पितरः २) पालक पुरुषो (वः यद्) आपलोगों का जो (घोरम्) भयंकर कार्य है (तस्मै नमः) उसका भी हम आदर करते हैं। (यत् वः क्रूरं तस्मै नमः) जो आपका युद्ध आदि के अवसर पर क्रूर शत्रुहिंसा आदि कर्म है उसका भी हम आदर करते हैं। हे (पितरः पितरः) प्रजा के पालक पुरुषो ! (वः यत् शिवम् तस्मै नमः) आपलोगों का जो शिव, मङ्गल कल्याणकारी कार्य है उसका हम आदर करते हैं। (वः यत् स्योनं तस्मै नमः) आप लोगों का जो प्रजाको सुख पहुंचाने वाला कार्य है उसका हम आदर करते हैं। हे (पितरः २) परालक पुरुषो ! (वः नमः) आपलोगों का हम आदर करते हैं और (वः स्वधा) आप लोगों के निमित्त शरीर पोषक यह अन्न प्रदान करते हैं।
टिप्पणी
नमो वः पितरो रसाय, नमो वः पितरः शोषाय, नमा वः पितरो जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरो घोराय, नमो वः पितरो मन्यवे, नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्तः पितरो दत्त सता वः पितरो देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त॥ इति यजु०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Homage and salutations to you, for blazing grandeur, homage and salutations to you, pitaras, for fiery passion.
Translation
Homage, O Fathers, to your terror; homage, O Fathers, to your fury.
Translation
O fore-fathers, let there be due respect for your anger and O elders, respect for your wrath against evils.
Translation
O elders, all respect for your righteous indignation O elders all ho„ our to your hatred of the evil forces.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८२−(भामाय)अर्त्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभा०। उ० १।१४०। भा दीप्तौ-मन्। भामं प्रकाशं प्रतापंप्राप्तुम् (मन्यवे) यथा म० ८१। मन्युं क्रोधं निवर्तयितुम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal