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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 53/ मन्त्र 12
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    य इ॒मे रोद॑सी उ॒भे अ॒हमिन्द्र॒मतु॑ष्टवम्। वि॒श्वामि॑त्रस्य रक्षति॒ ब्रह्मे॒दं भार॑तं॒ जन॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । इ॒मे इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ । अ॒हम् । इन्द्र॑म् । अतु॑स्तवम् । वि॒श्वामि॑त्रस्य । र॒क्ष॒ति॒ । ब्रह्म॑ । इ॒दम् । भार॑तम् । जन॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य इमे रोदसी उभे अहमिन्द्रमतुष्टवम्। विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। इमे इति। रोदसी इति। उभे इति। अहम्। इन्द्रम्। अतुस्तवम्। विश्वामित्रस्य। रक्षति। ब्रह्म। इदम्। भारतम्। जनम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 53; मन्त्र » 12
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या य इमे उभे रोदसी ब्रह्मेदं भारतं जनं रक्षति यमिन्द्रमहमतुष्टवं तस्य विश्वामित्रस्यैवोपासनां यूयं कुरुत ॥१२॥

    पदार्थः

    (यः) (इमे) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (उभे) (अहम्) (इन्द्रम्) परमात्मानम् (अतुष्टवम्) प्रशंसेयम् (विश्वामित्रस्य) सर्वस्य सुहृदः (रक्षति) (ब्रह्म) धनं ब्रह्माण्डं वा (इदम्) वर्त्तमानम् (भारतम्) भारत्या वाचोऽपं वेत्ता धर्त्ता वा तम् (जनम्) प्रसिद्धं मनुष्यादिकं प्राणिमयम् ॥१२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या येनेश्वरेण सर्वं जगत्सृष्ट्वा रक्ष्यते तस्यैव स्तुतिप्रार्थनोपासनाः सततं कुरुत ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (इमे) ये (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (ब्रह्म) धन वा ब्रह्माण्ड (इदम्) इस वर्त्तमान (भारतम्) वाणी के जानने वा धारण करनेवाले उस (जनम्) प्रसिद्ध मनुष्य आदि प्राणि स्वरूप की (रक्षति) रक्षा करता है जिस (इन्द्रम्) परमात्मा की हम (अतुष्टवम्) प्रशंसा करें उस (विश्वामित्रस्य) सबके मित्र की ही उपासना आप लोग करें ॥१२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण संसार रचकर रक्षित है, उसकी ही स्तुति प्रार्थना और उपासना निरन्तर करो ॥१२॥

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    विषय

    स्तवन व स्वाध्याय

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (इमे उभे रोदसी) = इन दोनों द्यावापृथिवी को (रक्षति) = रक्षित करता है, (अहम्) = मैं उस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (अतुष्टवम्) = स्तुत करता हूँ। वस्तुतः प्रभुस्तवन ही मुझे वासनाओं के आक्रमण से बचाता है। [२] (विश्वामित्रस्य) = प्राणिमात्र के मित्र उस प्रभु का (इदं ब्रह्म) = यह सृष्टि के प्रारम्भ में दिया गया ज्ञान (भारतं जनम्) = लोक-भरण, लोक-संग्रह में प्रवृत्त मनुष्य को रक्षति सुरक्षित करनेवाला होता है। इस ज्ञान के अध्ययन से उसका जीवन पवित्र बना रहता है 'नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते' ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभुस्तवन करें- प्रभुप्रदत्त ज्ञान की वाणियों का अध्ययन करें।

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    विषय

    उत्तम राजा।

    भावार्थ

    (यः) जो (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, परमेश्वर वा राजा (इमे) इन (उभे रोदसी) दोनों भूमि, सूर्य और उनके समान स्त्री-पुरुषों की (रक्षति) रक्षा करता है और जो (इदं) इस (ब्रह्म) महान् ब्रह्माण्ड और धनैश्वर्य की और (भारतं जनं) जो भारती वाणी के उपासक विद्वान् और (भारतं) मनुष्यों के समूह की (रक्षति) रक्षा करता है (तस्य) उस (विश्वामित्रस्य) सबके मित्रस्वरूप परमेश्वर और राजा के (इन्द्रम्) ऐश्वर्य की मैं (अतुष्टवम्) सदा स्तुति करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ इन्द्रापर्वतौ। २–१४, २१-२४ इन्द्रः। १५, १६ वाक्। १७—२० रथाङ्गानि देवताः॥ छन्दः- १, ५,९, २१ निचृत्त्रिष्टुप्। २, ६, ७, १४, १७, १९, २३, २४ त्रिष्टुप्। ३, ४, ८, १५ स्वराट् त्रिष्टुप्। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२,२२ अनुष्टुप्। २० भुरिगनुष्टुप्। १०,१६ निचृज्जगती। १३ निचृद्गायत्री। १८ निचृद् बृहती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! ज्या परमेश्वराने संपूर्ण संसार निर्माण करून त्याचे रक्षण केलेले आहे, त्याची सदैव स्तुती, प्रार्थना व उपासना करावी. ॥ १२ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I serve and worship Indra who protects both heaven and earth and the firmament between the two, the people of this all bearing mother earth and the wealth and power of the friendly world of humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The theme of enlightened persons duties further moves.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should also worship that one Indra (ruler of the world), who protects both the heaven and the earth, all universe or wealth, a great scholar. I and all men glorify him.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! is you should always glorify, pray to and have communion with that one God who creates this whole world and protects it.

    Foot Notes

    (ब्रह्म) धनं ब्रह्माण्डं वा । ब्रह्मेति धननाम (NG 2,10) = Wealth or world. (भारतम्) भारत्या बाचोऽयं वेत्ता धर्त्ता वा तम् । भारतीति वाङ्नाम = To that great scholar who is the knower or (NG 1, 11) upholder of the speech.

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