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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 53/ मन्त्र 18
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - रथाङ्गानि छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    बलं॑ धेहि त॒नूषु॑ नो॒ बल॑मिन्द्रान॒ळुत्सु॑ नः। बलं॑ तो॒काय॒ तन॑याय जी॒वसे॒ त्वं हि ब॑ल॒दा असि॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बल॑म् । धे॒हि॒ । त॒नूषु॑ । नः॒ । बल॑म् । इ॒न्द्र॒ । अ॒न॒ळुत्ऽसु॑ । नः॒ । बल॑म् । तो॒काय॑ । तन॑याय । जी॒वसे । त्वम् । हि । ब॒ल॒ऽदाः । असि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बलं धेहि तनूषु नो बलमिन्द्रानळुत्सु नः। बलं तोकाय तनयाय जीवसे त्वं हि बलदा असि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बलम्। धेहि। तनूषु। नः। बलम्। इन्द्र। अनळुत्ऽसु। नः। बलम्। तोकाय। तनयाय। जीवसे। त्वम्। हि। बलऽदाः। असि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 53; मन्त्र » 18
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! हि यतस्त्वं बलदा असि तस्मान्नस्तनूषु बलं धेहि। नोऽनळुत्सु बलं धेहि नो जीवसे तोकाय तनयाय बलं धेहि ॥१८॥

    पदार्थः

    (बलम्) पराक्रमम् (धेहि) (तनूषु) शरीरेषु (नः) अस्मान् (बलम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (अनळुत्सु) गवादिषु (नः) अस्माकम् (बलम्) (तोकाय) ह्रस्वाय बालकाय (तनयाय) प्राप्तकौमारयौवनाऽवस्थाय (जीवसे) जीवितुम् (त्वम्) (हि) यतः (बलदाः) (असि) ॥१८॥

    भावार्थः

    हे आचार्य ! भवान् यस्माच्छरीरात्मबलवानस्ति तस्मादस्मासु पूर्णं शरीरात्मबलं निधेहि ॥१८॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! (हि) जिससे आप (बलदाः) बल के देनेवाले (असि) हैं इससे (नः) हम लोगों के (तनूषु) शरीरों में (बलम्) बल को (धेहि) धारण करो और (नः) हम लोगों को (अनळुत्सु) गौ आदिकों में (बलम्) बल को धारण करो, हम लोगों के (जीवसे) जीवन और (तोकाय) छोटे बालक तथा (तनयाय) कौमार अवस्था को प्राप्त पुरुष के लिये (बलम्) पराक्रम को धारण करो ॥१८॥

    भावार्थ

    हे आचार्य्य ! आप जिससे कि शरीर और आत्मा के बल से युक्त हो, इससे हम लोगों में पूर्ण शरीर और आत्मा के बल को धारण करो ॥१८॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = हे इन्द्र ! ( नःतनूषु ) = हमारे शरीर में ( बलं धेहि ) = बल दो ( न: अनडुत्सु ) = हमारे बैलादि पशुओं को बल दो, ( बलं तोकाय तनयाय ) = हमारे पुत्र-पौत्रों को बल दो । ( जीवसे ) = सुखपूर्वक जीने के लिए ( त्वम् हि बलदा असि ) = आप ही बलदाता हो । 

     

    भावार्थ

    भावार्थ = हे महा समर्थ परमेश्वर ! कृपा करके हमारे शरीरों में बल प्रदान करें, जिससे हम आपकी भक्ति और वेद-विचार, प्रचारादि कर सकें, ऐसे ही हमारे पुत्र, पौत्रादि सन्तानों में भी बल और जीवन प्रदान करें। जिससे उनमें भी, आपकी भक्ति और वेद - विचारादि उत्तम साधनों का सद्भाव बना रहे, और जिससे सब लोग आस्तिक और आपके प्रेमी भक्त बनकर सदा सुख के भागी बनें। भगवन्! आप ही सबके बलप्रदाता हो, इसलिए आपसे ही बल की हम लोग प्रार्थना करते हैं ।

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    विषय

    'बलदा' प्रभु

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (न:) = हमारे (तनूषु) = शरीरों में (बलं धेहि) = बल को धारण करिए। (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् ! (न:) = हमारे (अनुडुत्सु) = इन्द्रियरूप बैलों में (बलम्) = बल को धारण करिए । [२] (तोकाय तनयाय) = हमारे पुत्रों व पौत्रों में (बलम्) = बल को धारण करिए, (जीवसे) = ताकि उनका जीवन उत्तम बने । (त्वं हि) = आप ही (बलदा:) = बल को देनेवाले (असि) = हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हे प्रभो! हमें बल दीजिए, ताकि हम उत्तम जीवन को बिता सकें।

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    विषय

    बलप्रद स्वामी सबको पुष्ट करे।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् स्वामिन् ! हे परमेश्वर ! तू (नः) हमारे (तनूषु) शरीरों में (बलं धेहि) बल को धारण करा। (नः) हमारे (अनडुत्सु) गौ, बैल आदि प्राणि-वर्गों में प्रदान कर। तू (नः) हमारे (तोकाय) (बलं धेहि) बल पुत्र और (तनयाय) पौत्रादि के हितार्थ या छोटे बालक और ऊंची उमर के बड़े पुत्रादि और उनके और हमारे (जीवसे) दीर्घ जीवन के लिये (बलं) बल प्रदान कराओ। (त्वं हि) तू निश्चय से (बलदाः) बल का देने वाला (असि) है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ इन्द्रापर्वतौ। २–१४, २१-२४ इन्द्रः। १५, १६ वाक्। १७—२० रथाङ्गानि देवताः॥ छन्दः- १, ५,९, २१ निचृत्त्रिष्टुप्। २, ६, ७, १४, १७, १९, २३, २४ त्रिष्टुप्। ३, ४, ८, १५ स्वराट् त्रिष्टुप्। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२,२२ अनुष्टुप्। २० भुरिगनुष्टुप्। १०,१६ निचृज्जगती। १३ निचृद्गायत्री। १८ निचृद् बृहती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे आचार्य! तुम्ही शरीर व आत्म्याच्या बलाने युक्त आहात. त्यामुळे आमच्यामध्ये पूर्ण शरीर व आत्मबल धारण करा. ॥ १८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, Spirit of life and vitality, give strength to our bodies, put strength into our animals. Give strength and vital energy to our children and our youth. You alone are the giver of strength, energy and vitality.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The tasks set before the enlightened persons are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (Acharya, giver of the. great wealth of health and wisdom)! give strength to our bodies;; give strength to the bulls who carry our vehicles; give strength to our infants and grown up sons, so that they may live long. Indeed, you are the giver of strength.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O Acharya (Preceptor) as you are endowed with physical and spiritual power, enable us also to have full power of the body and soul.

    Foot Notes

    (अनलुत्सु) गवादिषु । = In the bulls. (तोकाय ) ह्रस्वाय बालकाय । तोकम् इत्यपत्यनाम (NG 2, 2) For an infant (तनयाय ) प्राप्तकौमारयौवनावस्थाय । तनय इत्यपत्यनाम (NG 2, 2) = For grown up son.

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    বলং ধেহি তনুষূ নো বলমিন্দ্রানলুৎসু নঃ।

    বলং তোকায় তনয়ায় জীবসে ত্বং হি বলদা অসি।।৪৯।।

    (ঋগ্বেদ ৩।৫৩।১৮)

    পদার্থঃ (বলম্ ইন্দ্র) হে সর্বশক্তিমান পরমাত্মা ! (নঃ তনুষূ) আমাদের শরীরে (বলম্ ধেহি) শক্তি দাও। (নঃ অনলুৎসু) আমাদের ষাঁড়ের তুল্য বলশালী কর। (বলং তোকায় তনয়ায়) আমাদের পুত্র ও পৌত্রদের বল প্রদান কর। (জীবসে) সুখপূর্বক বাঁচার জন্যে (ত্বম্ হি বলদা অসি) তুমিই হলে বলদাতা।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে মহাসমর্থ পরমেশ্বর! কৃপা করে আমাদের শরীরে বল প্রদান কর, যাতে আমরা তোমাকে ভক্তি ও বেদ বিচার, প্রচারাদি করতে পারি। ওইরূপেই আমাদের পুত্র, পৌত্রাদি সন্তানের মধ্যেও বল এবং জীবন প্রদান করো; যাতে তাদের মধ্যেও তোমার ভক্তি ও বেদ বিচারাদি উত্তম সাধনের সদ্ভাব তৈরি হয় এবং যাতে সকল লোক আস্তিক ও তোমার প্রেমী ভক্ত হয়ে সদা সুখের ভাগীদার হয়। হে ভগবান! তুমিই সকলের বল প্রদাতা, এজন্য তোমার নিকটেই আমরা সবাই বল প্রার্থনা করছি।।৪৯।।

     

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