ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 53/ मन्त्र 4
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
जा॒येदस्तं॑ मघव॒न्त्सेदु॒ योनि॒स्तदित्त्वा॑ यु॒क्ता हर॑यो वहन्तु। य॒दा क॒दा च॑ सु॒नवा॑म॒ सोम॑म॒ग्निष्ट्वा॑ दू॒तो ध॑न्वा॒त्यच्छ॑॥
स्वर सहित पद पाठजा॒या । इत् । अस्त॑म् । म॒घ॒ऽव॒न् । सा । इत् । ऊँ॒ इति॑ । योनिः॑ । तत् । इत् । त्वा॒ । यु॒क्ताः । हर॑यः । व॒ह॒न्तु॒ । य॒दा । क॒दा । च॒ । सु॒नवा॑म । सोम॑म् । अ॒ग्न् । त्वा॒ । दू॒तः । ध॒न्वा॒ति॒ । अच्छ॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
जायेदस्तं मघवन्त्सेदु योनिस्तदित्त्वा युक्ता हरयो वहन्तु। यदा कदा च सुनवाम सोममग्निष्ट्वा दूतो धन्वात्यच्छ॥
स्वर रहित पद पाठजाया। इत्। अस्तम्। मघऽवन्। सा। इत्। ऊँ इति। योनिः। तत्। इत्। त्वा। युक्ताः। हरयः। वहन्तु। यदा। कदा। च। सुनवाम। सोमम्। अग्निः। त्वा। दूतः। धन्वाति। अच्छ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 53; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषयमाह।
अन्वयः
हे मघवन् ! या ते जायाऽस्तं प्राप्नुयात्सेत् उ सन्तानस्य योनिर्भूयात् तत्तां त्वा चिदेव युक्ता हरयो सोमं वहन्तु। यदा कदा च वयं सोमं सुनवाम तं त्वं दूतोऽग्निश्च धन्वातीव त्वेदच्छाऽऽप्नोतु ॥४॥
पदार्थः
(जाया) पत्नी (इत्) एव (अस्तम्) गृहम् (मघवन्) ऐश्वर्ययुक्त (सा) (इत्) (उ) (योनिः) सन्ताननिमित्ता (तत्) ताम् (इत्) एव (त्वा) त्वाम् (युक्ताः) योजिताः (हरयः) अश्वाः (वहन्तु) (यदा) (कदा) (च) (सुनवाम) निष्पादयेम (सोमम्) (अग्निः) विद्युदिव (त्वा) (दूतः) यो दुनोति परितापयति शत्रून् सः (धन्वाति) प्राप्नुयात् (अच्छ) ॥४॥
भावार्थः
यथोत्तमौ द्वावश्वौ वोढेन रथेन सुखेन रथस्य स्वामिनं स्थानान्तरं प्रापयतस्तथैव परस्परस्मिन् प्रीतौ योग्यौ विद्वांसो गृहाश्रममलंकर्त्तुं शक्नुयाताम् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (मघवन्) ऐश्वर्य से युक्त ! जो (ते) आपकी (जाया) स्त्री (अस्तम्) गृह को प्राप्त होवे (सा) वह (इत्) ही (उ) भी सन्तान का (योनिः) कारण होवे (तत्) उसको और (त्वा) आपको (च, इत्) ही (युक्ताः) संयुक्त (हरयः) घोड़े (सोमम्) सोमलता के रस को (वहन्तु) धारण करें और (यदा) जब (कदा) कब हम लोग सोमलता के रस को (सुनवाम) संचित करें उसको आप (दूतः) शत्रुओं के सन्ताप देनेवाले (अग्निः) बिजुली के समान (धन्वाति) प्राप्त होवें (त्वा) आपको ही (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थ
जैसे श्रेष्ठ दो घोड़े ले चलनेवाले वाहन से सुखपूर्वक रथ के स्वामी को एक स्थान से दूसरे स्थान को प्राप्त कराते हैं, वैसे ही परस्पर में प्रसन्न और योग्य दो विद्वान् गृहाश्रम को शोभित करने को समर्थ हों ॥४॥
विषय
गृहिणी गृहमुच्यते
पदार्थ
[१] पति प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि (जाया इत् अस्तम्) = पत्नी ही घर है 'न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते'। हे (मघवन्) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सा इत् उ योनिः) = पत्नी ही निश्चय से सब उत्तमताओं के मिश्रण व बुराईयों के अमिश्रण का स्थान है। (युक्ता हरयः) = अपने कार्य में ठीक रूप से लगे हुए इन्द्रियाश्व (इत्) = निश्चय से (त्वा) = आपको (तद् वहन्तु) = उस घर की ओर लेनेवाले हों, अर्थात् जब पत्नी के सुप्रबन्ध से घर में हमारे इन्द्रियाश्व उत्तम कर्मों में व्याप्त हों, तो वहाँ आपकी उपस्थिति को हम अनुभव करें। [२] (च) = और (यदा कदा) = जब भी अवसर प्राप्त हो हम (सोमं सुनवाम) = सोम का सम्पादन करें-शरीर में सोम का रक्षण करें। हमारा कोई भी कार्य सोम का विनाशक न हो। हे प्रभो ! (अग्निः) प्रगतिशील जीव ही (दूत:) = तप की अग्नि में अपने को तपाता हुआ (त्वा अच्छ) = आपकी ओर (धन्वाति) = गतिवाला होता है। अतः हम भोग-प्रधान जीवन को न बिताते हुए तपस्वी हों और आपकी ओर आनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ– सद्गृहस्थों के घर में ही प्रभु की उपस्थिति अनुभव होती है। ये भोग-प्रधान जीवन न बिताते हुए सोम का रक्षण करते हैं और तपस्वी बनकर प्रभु की ओर चलते हैं ।
विषय
गृहणी गृह है। उसका संग्रहण, अग्नि-साक्षिक विवाह। राजा का उद्भव मूल प्रजा है।
भावार्थ
(जाया इत्) स्त्री ही वास्तव में (अस्तं) घर है। हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! (सा इत् उ योनिः) वही वास्तविक रहने का आश्रय स्थान है। (तत् इत्) वहां (युक्ताः हरयः) रथ में लगे अश्वों के समान, समाहित चित्त वाले प्रेमी विद्वान्जन (त्वा वहन्तु) तुझे ले जावें। हम लोग भी (यदा कदा च) जब कभी भी (सोमम्) उत्पन्न करने योग्य पुत्र के तुल्य ऐश्वर्ययुक्त वा अभिषेचनीय तुझको (सुनवाम) सम्पन्न, ईश्वर का स्वामी बनावें या अभिषेक करें तब (अग्निः त्वा) अग्नि के समान ज्ञानप्रकाशक और तेजस्वी पुरुष (दूतः) संदेश- हर एवं शत्रुओं को संताप देने हारा वीर पुरुष (त्वा) तुझको (अच्छ धन्वाति) प्राप्त हो। राजा की जाया प्रजागण ही घर हैं वही उसका आश्रय वा योनि अर्थात् सन्तान के समान राजा को जन्म देती है। अश्वादि एवं विद्वान् जन उसको प्रजा के पास ही ले जावें। प्रजा जब समृद्धि या समृद्ध राजा को अभिषेक करे ज्ञानी दूत आदि उसके सन्मुख आकर प्रजा की बात कहा करें। उसी प्रकार गृहस्थ पक्ष में—स्त्री ही पुरुष का घर, आश्रय और सन्तानोत्पादक है। विद्वान् उसको स्त्री के प्राप्त करने के लिये प्रेरित करें। जब २ लोग पुत्र को उत्पन्न करने का यत्न करें अर्थात् पुत्रार्थी हों तो अग्नि (आवसथ्य अग्नि) को दूत के समान सन्मुख प्राप्त हों। अग्नि साक्षिक विवाह हुआ करे। तभी उत्तम विवाह से उत्तम पुत्र उत्पन्न होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १ इन्द्रापर्वतौ। २–१४, २१-२४ इन्द्रः। १५, १६ वाक्। १७—२० रथाङ्गानि देवताः॥ छन्दः- १, ५,९, २१ निचृत्त्रिष्टुप्। २, ६, ७, १४, १७, १९, २३, २४ त्रिष्टुप्। ३, ४, ८, १५ स्वराट् त्रिष्टुप्। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२,२२ अनुष्टुप्। २० भुरिगनुष्टुप्। १०,१६ निचृज्जगती। १३ निचृद्गायत्री। १८ निचृद् बृहती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्।
मराठी (1)
भावार्थ
जसे उत्तम दोन घोडे रथाच्या स्वामीला वाहनातून सहजतेने एका स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी पोहोचवितात तसेच परस्पर प्रसन्न व योग्य दोन विद्वान (स्त्री-पुरुष) गृहस्थाश्रम सुशोभित करण्यास समर्थ असावेत. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, maghavan, lord of power, prosperity, peace and passion of life, the wife is the real spirit of the home. She is the haven of conjugal bliss. There may the horses yoked to your chariot bear you. And whenever we prepare the soma, then let Agni, the fire of life, be the messenger of passion and inspiration for you.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties on learned persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O prosperous king! your wife is your real home. She is the base of the birth of your progeny. Let good horses, yoked in your chariot take both of you to distant places to drink Sonia. Whenever we extract Soma, let it reach you; you give crushing defeat to your enemies and shine like the lighting.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As two well-trained horses yoked tn comfortable chariot carry their master to distant places, same way the loving and worthy husband and wife can well accomplish the duties of household life.
Foot Notes
(अस्तम् ) गृहम् । अस्तम् इति गृनाम (N. G. 3,4 ) = Dwelling place, home. (योनि:) सन्ताननिमित्ता | योनि: is from यु-मिश्रणामिश्रणयोः । अत्रमिश्रणार्थ:। The cause of birth of the children The cause of union of the couple and progeny. (धन्वाति) प्राप्नुयात् । (धम्वाति ) धन्वान्र्गतिकर्मा –गतेस्त्रिष्वत्र प्राप्त्यर्थग्रहणम् । (NG_2, 14 ) = May obtain.
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