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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चाङ्गिरसः देवता - इन्द्र: छन्दः - आर्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    शुचि॑रसि पुरुनि॒ष्ठाः क्षी॒रैर्म॑ध्य॒त आशी॑र्तः । द॒ध्ना मन्दि॑ष्ठ॒: शूर॑स्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचिः॑ । अ॒सि॒ । पु॒रु॒निः॒ऽस्थाः । क्षी॒रैः । म॒ध्य॒तः । आऽशी॑र्तः । द॒ध्ना । मन्दि॑ष्ठः । शूर॑स्य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिरसि पुरुनिष्ठाः क्षीरैर्मध्यत आशीर्तः । दध्ना मन्दिष्ठ: शूरस्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिः । असि । पुरुनिःऽस्थाः । क्षीरैः । मध्यतः । आऽशीर्तः । दध्ना । मन्दिष्ठः । शूरस्य ॥ ८.२.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ वीरेभ्यो बलोत्पादकभक्ष्यपदार्था उच्यन्ते।

    पदार्थः

    हे आह्लादक सौम्यरस ! त्वं (शुचिः, असि) शुद्धोऽसि (पुरुनिष्ठाः) बहुषु कर्मयोगिषु स्थितिशीलः (क्षीरैः, दध्ना) पयोभिः दध्ना च (मध्यतः, आशीर्तः) मध्यभागे वासितः (शूरस्य, मन्दिष्ठः) शूरस्य कर्मयोगिनो हर्षोत्पादकश्चासि ॥९॥

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    विषयः

    स्वकर्मभिरीश्वरं प्रसादयेति वाञ्छानया दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे जीव ! त्वं शुचिः=पूतोऽसि । त्वं पुरुनिष्ठाः=बहुषु स्थितः । त्वं मध्यतः=जन्मनः परे काले । क्षीरैः=ईश्वरेण पूर्वमेव मातृस्तनयोर्मध्ये प्रदत्तैर्दुग्धैः । दध्ना च । आशीर्तः=संस्कृतः पोषितोऽसि । स त्वं शूरस्य=परमविक्रान्तस्य इन्द्राभिधायिनः परमेश्वरस्य । मन्दिष्ठः=स्वकर्मणा मादयितृतमो भव ॥९ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब वीरों के लिये बलकारक भक्ष्य पदार्थों का विधान कथन करते हैं।

    पदार्थ

    हे आह्लादजनक उत्तम रस ! तुम (शुचिः, असि) शुद्ध हो (पुरुनिष्ठाः) अनेक कर्मयोगियों में रहनेवाले हो (क्षीरैः, दध्ना) क्षीर दध्यादि शुद्ध पदार्थों के (मध्यतः, आशीर्तः) मध्य में संस्कृत किये गये हो (शूरस्य, मन्दिष्ठः) शूरवीर कर्मयोगी के हर्ष को उत्पन्न करनेवाले हो ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में पुष्टिकारक तथा आह्लादजनक दूध-घृतादि पदार्थों की महिमा वर्णन की गई है अर्थात् कर्मयोगी शूरवीरों के अङ्ग प्रत्यङ्ग दूध, दधि तथा घृतादि शुद्ध पदार्थों से ही सुसंगठित तथा सुरूपवान् होते हैं, तमोगुण-उत्पादक मादक द्रव्यों से नहीं, इसलिये प्रत्येक पुरुष को उक्त पदार्थों का ही सेवन करना चाहिये, हिंसा से प्राप्त होनेवाले तथा मादक द्रव्यों का नहीं ॥९॥

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    विषय

    स्वकर्मों से ईश्वर को प्रसन्न करो, यह वाञ्छा इससे दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    हे जीव ! तू (शुचिः) पवित्र (असि) है तू (पुरुनिष्ठाः) बहुत पदार्थों में स्थित है । तू (मध्यतः) मध्य में अर्थात् जन्म से परकाल में (क्षीरैः) पहिले ही ईश्वरद्वारा माता के स्तनद्वय में प्रदत्त दुग्धों से तथा (दध्ना) दधि से (आशीर्तः) पुष्ट हुआ है । वह तू (शूरस्य) परमबलिष्ठ परमात्मा का (मन्दिष्ठः) अत्यन्त आनन्ददायी बन ॥९ ॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रथम सर्व प्रकार से पवित्र और परोपकारी बनें, तदनन्तर अपने विशुद्ध कर्मों से उसके आनन्दप्रद होवें ॥९ ॥

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    विषय

    अभिषेक का अभिप्राय ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! तू ( पुरु-नि:-ष्ठाः ) बहुतों में स्थिर होकर, ( क्षीरैः ) शुद्ध जलों से ( मध्यतः ) सब के बीच ( आशीर्तः ) आसेवित होकर और ( दध्ना ) राष्ट्र को धारण करने वाले बल से ( शूरस्य ) शूरवीर पुरुष को भी ( मन्दिष्ठः ) आनन्दित, प्रसन्न करने वाला होकर ( शुचिः असि ) शुद्ध, पवित्रहृदय, धार्मिक हो। अभिषेकों का अभिप्राय राजा को रागद्वेष, पक्षपात, लोभ, क्रोधादि से पवित्र करना ही है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः । ४१, ४२ मेधातिथिर्ऋषिः ॥ देवता:—१—४० इन्द्रः। ४१, ४२ विभिन्दोर्दानस्तुतिः॥ छन्दः –१– ३, ५, ६, ९, ११, १२, १४, १६—१८, २२, २७, २९, ३१, ३३, ३५, ३७, ३८, ३९ आर्षीं गायत्री। ४, १३, १५, १९—२१, २३, २४, २५, २६, ३०, ३२, ३६, ४२ आर्षीं निचृद्गायत्री। ७, ८, १०, ३४, ४० आर्षीं विराड् गायत्री। ४१ पादनिचृद् गायत्री। २८ आर्ची स्वराडनुष्टुप्॥ चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    शुचिः मन्दिष्ठः

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (शुचिः असि) = पवित्र है, हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला है। (पुरुनिःष्ठा:) = पालक व पूरक रूप से शरीर निष्ठ होनेवाला है, शरीर में स्थित होकर तू पालन व पूरण करता है। (क्षीरैः) = दुग्धों से उत्पन्न हुआ हुआ तू (मध्यतः) = शरीर मध्य में स्थित हुआ हुआ (आशीर्तः) = समन्तात् शत्रुओं को शीर्ण करनेवाला है। [२] हे सोम तू (शूरस्य) = इन शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले पुरुष का (दध्ना) = धारक बल के द्वारा (मन्दिष्ठ:) = अधिक से अधिक आनन्दित करनेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें पवित्र व आनन्दमय जीवनवाला बनाता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Celestial soma, divine devotion of the dedicated, you are pure and potent, dedicated to the joy of many and the lord eternal, and seasoned in the process with milk, cream and curds. Surely you are the most delightful love of the heroic brave.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात पुष्टिकारक व आल्हादजनक दूध, घृत इत्यादी पदार्थांचे माहात्म्य वर्णिलेले आहे. अर्थात कर्मयोगी शूरवीरांचे अंगप्रत्यंग, दूध, दही व घृत इत्यादी शुद्ध पदार्थानीच सुसंगठित व स्वरूपवान होतात. तमोगुणी मादक द्रव्यांनी नाही. त्यासाठी प्रत्येक पुरुषाला वरील पदार्थांचेच सेवन केले पाहिजे. हिंसेने प्राप्त होणाऱ्या मादक द्रव्यांचे नव्हे. ॥९॥

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