ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 12
ऋषिः - अत्रिः
देवता - पवमानः सोमः पूषा वा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒यं त॑ आघृणे सु॒तो घृ॒तं न प॑वते॒ शुचि॑ । आ भ॑क्षत्क॒न्या॑सु नः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । ते॒ । आ॒घृ॒णे॒ । सु॒तः । घृ॒तम् । न । प॒व॒ते॒ । शुचि॑ । आ । भ॒क्ष॒त् । क॒न्या॑सु । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं त आघृणे सुतो घृतं न पवते शुचि । आ भक्षत्कन्यासु नः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । ते । आघृणे । सुतः । घृतम् । न । पवते । शुचि । आ । भक्षत् । कन्यासु । नः ॥ ९.६७.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(आघृणे) सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! (अयम्) असौ (सुतः) संस्कृतः (ते) भवतः (शुचि) शुद्धः स्वभावः (घृतं न) स्नेह इव (पवते) पवित्रयति। अथ च (नः) अस्मान् (कन्यासु) कल्याणकारिगुणेषु (आभक्षत्) गृह्णाति ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(आघृणे) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! (अयं) यह (सुतः) संस्कृत (ते) आपका (शुचि) शुद्ध स्वभाव (घृतं न) स्नेह की तरह (पवते) पवित्र करता है और (नः) हम लोगों को (कन्यासु) अपने कल्याणकारक गुणों में (आभक्षत्) ग्रहण करता है ॥१२॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मसुखोपलब्धि के लिए सत्कर्म करते हैं, उन्हें परमात्मा मङ्गलमय बनाता है ॥१२॥
विषय
दीप्ति व पवित्रता
पदार्थ
[१] हे (आघृणे) = ज्ञानदीप्ति से सर्वतः दीप्तिमन् पुरुष ! (अयम्) = यह सोम (ते सुतः) = तेरे लिये उत्पन्न किया गया है। उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (घृतं न) = घृत के समान, ज्ञानदीप्ति के समान (शुचि) = पवित्रता को करता हुआ (पवते) = तेरे में गतिवाला होता है। तुझे ज्ञानदीप्त करता है और पवित्र बनाता है । [२] यह सोम (नः) = हमें (कन्यासु) = सब दीप्तियों में (आभक्षत्) = भागी बनाये ।
भावार्थ
भावार्थ- स्वाध्याय में लगे रहने से सुरक्षित हुआ हुआ यह सोम हमें दीप्ति व पवित्रता को प्राप्त कराता है दीप्ति व पवित्रता को प्राप्त करके यह 'विश्वामित्र' सबके प्रति स्नेहवाला बनता है और इस प्रकार सोम का स्तवन करता है-
विषय
वैसा ही तेजस्वी पुरुष कन्याओं का पति होने योग्य है।
भावार्थ
हे (आघृणे) सब प्रकार से तेजस्विन् ! जो (नः कन्यासु आ भक्षत्) हमें कन्याओं के निमित्त प्राप्त हो (अयं) यह (ते) तेरे (शुचि) शुद्ध कान्तियुक्त (घृतं न) प्रकाशवत् (ते सुतः) तेरा अभिषिक्त पुत्रवत् निष्णात ज्ञान प्रकाश को (पवते) प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of light and fire of passion and peace, this soma ecstasy of your love, passion and peace of life, pure, purifying and inspiring, flows abundant like ghrta into the vedi. May this passion, light and peace inspire us and join us in our cherished pursuits of life with complete commitment and dedication.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्मसुखाच्या उपलब्धीसाठी सत्कर्म करतात त्यांना परमात्मा मंगलमय बनवितो. ॥१२॥
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