ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 24
ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
यत्ते॑ प॒वित्र॑मर्चि॒वदग्ने॒ तेन॑ पुनीहि नः । ब्र॒ह्म॒स॒वैः पु॑नीहि नः ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । प॒वित्र॑म् । अ॒र्चि॒ऽवत् । अग्ने॑ । तेन॑ । पु॒नी॒हि॒ । नः॒ । ब्र॒ह्म॒ऽस॒वैः । पु॒नी॒हि॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते पवित्रमर्चिवदग्ने तेन पुनीहि नः । ब्रह्मसवैः पुनीहि नः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । पवित्रम् । अर्चिऽवत् । अग्ने । तेन । पुनीहि । नः । ब्रह्मऽसवैः । पुनीहि । नः ॥ ९.६७.२४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 24
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (ते) तव (यत्) यत् (पवित्रम्) पूतं (अर्चिवत्) सूर्यादिषु तेजोऽस्ति (तेन) तेन तेजसा (नः) अस्मान् (पुनीहि) पवित्रय। तथा (ब्रह्मसवैः) स्वीयब्रह्मभावेन (नः) अस्मान् (पुनीहि) पवित्रय ॥२४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (ते) आपका (यत्) जो (पवित्रम्) पवित्र (अर्चिवत्) सूर्यादिकों में तेज है, (तेन) उससे (नः) हम लोगों को (पुनीहि) पवित्र करिए। तथा (ब्रह्मसवैः) अपने ब्रह्मभाव से (नः) हम लोगों को (पुनीहि) पवित्र करिए ॥२४॥
भावार्थ
परमात्मा सूर्यादि सब दिव्य पदार्थों का प्रकाशक है और उसी के प्रकाश से प्रकाशित होकर सब तेजोमय प्रतीत होते हैं ॥२४॥
विषय
'ज्ञान व यज्ञों' द्वारा पवित्रता
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (यत्) = जो (ते) = तेरा (अर्चिवत्) = आकाश की ज्वालावाला अथवा 'अर्च पूजायाम्' पूजा की वृत्ति से युक्त (पवित्रम्) - जीवन को पवित्र बनानेवाला (ब्रह्म) = ज्ञान है, (तेन) = उस पवित्र ज्ञान से (नः) = हमें (पुनीहि) = पवित्र करिये। [२] हे अग्रे ! इस वेदज्ञान द्वारा उपदिष्ट (सवैः) = यज्ञों से (नः) = हमें (पुनीहि) = पवित्र करिये। वेदोपदिष्ट यज्ञों को करते हुए हम पवित्र - जीवनवाले बनें।
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान को प्राप्त करें। कर्मेन्द्रियाँ ज्ञानपूर्वक किये जानेवाले यज्ञों में प्रवृत्त हों । इस प्रकार हमारा जीवन 'ज्ञान व यज्ञ' के द्वारा पवित्र हो जाये।
विषय
तेजस्वी ज्ञानी लोग सबको पवित्र करें।
भावार्थ
हे (अग्ने) अग्ने ! तेजस्विन् ! (यत्) जो (ते) तेरा (अर्चिवत्) तेजोयुक्त (पवित्रम् ब्रह्म) पवित्र ब्रह्म ज्ञान है (तेन नः पुनीहि) उससे तू हमें पवित्र कर। (सः) वह तू (नः पुनीहि) हमें सदा पवित्र करता रह।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord omniscient and self-refulgent, whatever power and purity there is in you and your radiations such as the sun and other stars, with that, pray, purify and sanctify us. Purify and illuminate us with the radiations of your grace.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सूर्य इत्यादी सर्व दिव्य पदार्थांचा प्रकाशक आहे व त्याच्याच प्रकाशाने प्रकाशित होऊन सर्व पदार्थ तेजोमय बनतात. ॥२४॥
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