ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 14
आ क॒लशे॑षु धावति श्ये॒नो वर्म॒ वि गा॑हते । अ॒भि द्रोणा॒ कनि॑क्रदत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । क॒लशे॑षु । धा॒व॒ति॒ । श्ये॒नः । वर्म॑ । वि । गा॒ह॒ते॒ । अ॒भि । द्रोणा॑ । कनि॑क्रदत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ कलशेषु धावति श्येनो वर्म वि गाहते । अभि द्रोणा कनिक्रदत् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । कलशेषु । धावति । श्येनः । वर्म । वि । गाहते । अभि । द्रोणा । कनिक्रदत् ॥ ९.६७.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 14
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
जगत्पूज्य परमात्मन् ! (श्येनः) यथा विद्युत् (वर्म) विग्रहवद्वस्तु (विगाहते) अवगाहते। तथा (अभिद्रोणा) प्रतिविग्रहवद्वस्तुनोऽभिमुखं (कनिक्रदत्) सशब्दं प्राप्नोति। इत्थं (कलशेषु) प्रत्येकस्थानेषु (आधावति) भवान् विराजितो भवति ॥१४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (श्येनः) जैसे विद्युत् (वर्म) विग्रहवत् वस्तु का (विगाहते) अवगाहन करती है और (अभिद्रोणा) प्रत्येक विग्रहवद् वस्तु के अभिमुख (कनिक्रदत्) शब्दायमान होकर प्राप्त होती है। इस प्रकार (कलशेषु) प्रत्येक स्थान में (आधावति) आप विराजमान होते हैं ॥१४॥
भावार्थ
विद्युत् निराकार होकर भी सबसे तेजस्वी, ओजस्वी और शब्दायमान है। इसी प्रकार निराकार परमात्मा तेजस्वी, ओजस्वी तथा शब्दयोनि होकर विराजमान है। यहाँ विद्युत् का दृष्टान्त अत्यन्त बल और निराकार के अभिप्राय से है, किसी और अभिप्राय से नहीं ॥१४॥
विषय
'श्येनो वर्य विगाहते'
पदार्थ
[१] यह सोम (कलशेषु) = इन शरीर रूप कलशों में [सोलह कलाओं के निवास के स्थानों में] (आधावति) = समन्तात् गतिवाला होकर शुद्धि को करता है [धाव् गतिशुद्धयोः] । [२] (श्येनः) = शंसनीय गतिवाला यह सोम (वर्म विगाहते) = [ब्रह्म वर्म ममान्तरम्] ब्रह्मरूप कवच का अवगाहन करता है, अर्थात् यह सोम हमें उस प्रभु का दर्शन कराता है, जो हमारे कवच के रूप में हैं। [२] यह सोम (द्रोणा अभि) = इन शरीर रूप द्रोण पात्रों की ओर प्राप्त होता हुआ (कनिक्रदत्) = प्रभु का स्तवन करता है। अथवा प्रभु-स्तवन करता हुआ इन पात्रों को प्राप्त होता है। प्रभु-स्तवन ही सोमरक्षण का साधन बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें शुद्ध करता है, प्रभु को प्राप्त कराता है, हमें स्तुति की वृत्तिवाला बनाता है।
विषय
स्वच्छ पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र पहने, उत्तम गृह में प्रवेश करे। (
भावार्थ
(श्येनः) उत्तम आचार-चरित्रवान् पुरुष होकर (कलशेषु) जल से पूर्ण कलशों द्वारा (आ धावति) अपने को सब प्रकार शुद्ध करे। (वर्म) पहनने योग्य सुन्दर वस्त्रों, वा (वर्म) उत्तम गृह, [ गृहस्थ आश्रम ] को (विगाहते) प्रवेश करे। वह (द्रोणानि) गृहों को गृहोचित कर्त्तव्यों वा धनों को (अभि कनिक्रदत्) प्राप्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of light and passion fire, dives into the heart and imagination of the creative souls and, like the divine bird of flight and freedom, the eagle, breaks through the seal of mystery, speaking loud and bold into the poetic consciousness to reveal the secrets of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्युत निराकार असूनही सर्वात तेजस्वी, ओजस्वी व शब्दायमान आहे. याचप्रकारे निराकार परमात्मा तेजस्वी, ओजस्वी व शब्दयोनी बनून विराजमान आहे. येथे विद्युतचा दृष्टांत अत्यंत बल व निराकाराच्या अभिप्रायाने घेतलेला आहे. दुसऱ्या कोणत्या अभिप्रायाने नाही. ॥१४॥
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