ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 30
ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पुरउष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
अ॒लाय्य॑स्य पर॒शुर्न॑नाश॒ तमा प॑वस्व देव सोम । आ॒खुं चि॑दे॒व दे॑व सोम ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒लाय्य॑स्य । प॒र॒शुः । न॒ना॒श॒ । तम् । आ । प॒व॒स्व॒ । दे॒व॒ । सो॒म॒ । आ॒खुम् । चि॒त् । ए॒व । दे॒व॒ । सो॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अलाय्यस्य परशुर्ननाश तमा पवस्व देव सोम । आखुं चिदेव देव सोम ॥
स्वर रहित पद पाठअलाय्यस्य । परशुः । ननाश । तम् । आ । पवस्व । देव । सोम । आखुम् । चित् । एव । देव । सोम ॥ ९.६७.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 30
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (देव) हे दिव्यगुणयुक्त ! (अलाय्यस्य) सर्वत्र व्याप्तशत्रोर्यत् (परशुः) अस्त्रं (तम्) तत् (आखुञ्चित्) सर्वघातकमस्त्रं (ननाश) नाशय। (देव) हे परमात्मन् ! (आपवस्व) मां पवित्रय ॥३०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (देव) दिव्यगुणसंपन्न ! (अलाय्यस्य) सर्वत्र व्याप्त शत्रु का जो (परशुः) अस्त्र है, (तं) उस (आखुञ्चित्) सर्वघातक अस्त्र को (ननाश) नाश करिए ! (देव) हे परमात्मन् ! (आपवस्व) आप मुझको पवित्र करें ॥३०॥
भावार्थ
परमात्मा जिनमें दैवी संपत्ति के गुण समझता है, उनको वृद्धियुक्त करता है और जिनमें आसुरी भाव के अवगुण देखता है, उनका नाश करता है ॥३०॥
विषय
'आखु' को प्रभु प्राप्ति
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार प्रभु की उपासना करने पर (अलाय्यस्य) = [ an assailing enemy] आक्रमण करनेवाले शत्रु का (परशुः) = कुठार (ननाश) = नष्ट हो जाये। जब हम प्रभु की उपासना करते हैं, तो आक्रमण करनेवाले काम-क्रोध आदि शत्रुओं की टक्कर हृदयस्थ प्रभु से ही होती है। प्रभु से टकराकर ये नष्ट हो जाते हैं। इनके अस्त्र प्रभु पर टकराकर नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार हे (देव) = प्रकाशमय (सोम) = शान्त प्रभो! (तम्) = उस अपने उपासक को आपवस्व = सर्वथा पवित्र जीवनवाला बनाइये। [२] हे (देव सोम) = प्रकाशमय शान्त प्रभो! आप (आखुं चित् एव) = इस [आ खनति] विषय वासनाओं को उखाड़ देनेवाले इस व्यक्ति को (ही) = निश्चय से प्राप्त होते हैं। विषय वासनाओं से शून्य हृदय वह आसन होता है, जो प्रभु के आसीन होने के लिये उपयुक्ततम है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु की उपासना करते हैं, तो हमारे शत्रुओं के अस्त्र कुण्ठित हो जाते हैं । हम 'आखु' बन पाते हैं ।
विषय
अन्यायी की दुर्दशा, और भूमियों का सत्कार।
भावार्थ
(अलाय्यस्य = अराय्यस्य) क्षमा, धन आदि देने के अयोग्य वा हमारा अधिकार न देने वाले शत्रु का (परशुः) शस्त्र (तम् न- नाश) उसी को नष्ट करे। हे (सोम) उत्तम शासक ! तू (आ पवस्व) इस प्रकार दुष्टों का नाश कर। हे (देव सोम) तेजस्विन् ऐश्वर्यवन् ! तू (आखुं चित्) मूषक स्वभाव के सब ओर से धन खनन करने वाले कृषक, श्रमी व्यक्ति को (चित्) भी आदरपूर्वक (आ पवस्व) कार्य में लगा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, brilliant lord of life and vitality, destroy the axe of the assailant. Destroy the weapon of the thief. Save that which only turns the soil for food. O power divine, flow, purify us, save us.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर ज्यांच्यात दैवी संपत्तीचे गुण पाहतो, त्यांना वृद्धिंगत करतो व ज्यांच्यात आसुरी भावाचे अवगुण पाहतो त्यांचा नाश करतो. ॥३०॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal