ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 13
ऋषिः - विश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वा॒चो ज॒न्तुः क॑वी॒नां पव॑स्व सोम॒ धार॑या । दे॒वेषु॑ रत्न॒धा अ॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठवा॒चः । ज॒न्तुः । क॒वी॒नाम् । पव॑स्व । सो॒म॒ । धार॑या । दे॒वेषु॑ । र॒त्न॒ऽधाः । अ॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाचो जन्तुः कवीनां पवस्व सोम धारया । देवेषु रत्नधा असि ॥
स्वर रहित पद पाठवाचः । जन्तुः । कवीनाम् । पवस्व । सोम । धारया । देवेषु । रत्नऽधाः । असि ॥ ९.६७.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे जगदीश ! (कवीनाम्) कविवराणां मध्ये त्वं (वाचोजन्तुः) वेदवाणीजनकोऽसि। अथ च (देवेषु) विद्वद्भ्यः (रत्नधा असि) विद्यारत्नं धारयसि। एवम्भूतस्त्वं (धारया) स्वकीयसुधामय्या वृष्ट्या (पवस्व) पुनीहि ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (कवीनां) कवियों के मध्य में आप (वाचोजन्तुः) वेदवाणियों के उत्पादक हैं और (देवेषु) विद्वानों को (रत्नधा असि) विद्यारूप रत्न धारण कराते हैं। ऐसे आप (धारया) अपनी सुधामयी वृष्टि से (पवस्व) पवित्र करिए ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा ही वस्तुतः आदिकवि है। उसकी कवित्व शक्ति का अनुकरण करके अन्य कवियों ने अपने-अपने भावों को प्रकट किया है ॥१३॥
विषय
वाचो जन्तु - रत्नधा
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू ही (कवीनाम्) = क्रान्तप्रज्ञ मेधावी पुरुषों की (वाचः) = ज्ञानवाणियों का (जन्तुः) = जन्म देनेवाला है, तू ही उन्हें ज्ञान प्राप्त कराता है। हे सोम ! तू (धारया) = अपनी धारणशक्ति के साथ (पवस्व) = हमें प्राप्त हो । [२] हे सोम ! तू ही (देवेषु) = दिव्य गुणवाले पुरुषों में (रत्नधा असि) = सब रमणीयताओं का धारण करनेवाला है। सब रत्नों को यह सोम ही जन्म देता है ।
भावार्थ
भावार्थ - यह सोम शरीर में सुरक्षित होकर ज्ञान की वाणियों को जन्म देना है तथा सब रत्नों का हमारे में धारण करता है ।
विषय
विद्वान् का कार्य, उत्तम ज्ञान, धन, प्रदान करे।
भावार्थ
हे (सोम) उत्तम विद्वन् ! तू (देवेषु रत्नधाः असि) कामनावान् जनों में रमणीय ज्ञान और धन देने वाला है। तू (कवीनां वाचः जन्तुः) विद्वानों की वाणी को प्रकट करने वाला है, तू (धारया पवस्व) ज्ञान धारण करने वाली वाणी से सब को पवित्र कर वा सब को प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, you are the creator, originator and inspirer of the voice of poets. Flow free and abundant in streams and showers of revelation for the poets. You are the sole treasure and harbinger of the jewels of vision into the heart and soul of the poets of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्माच वास्तविक आदि कवी आहे. त्याच्या कवित्व शक्तीचे अनुकरण करून अन्य कवीनी आपापले भाव प्रकट केलेले आहे. ॥१३॥
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