अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
स बृ॑ह॒तींदिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । बृ॒ह॒तीम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
स बृहतींदिशमनु व्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । बृहतीम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥६.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(सः) वह व्रात्य-संन्यासी (बृहतीम्) उत्तमादिक से भी बड़ी अर्थात् उत्कृष्ट (दिशम्) दिश् अर्थात् और अधिक उच्च निर्देश या उद्देश्य को (अनु) लक्ष्य कर के (वि, अचलत्) विशेषतया चला, प्रयत्नवान् हुआ।