अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
स उ॑त्त॒मांदिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । उ॒त्ऽत॒माम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
स उत्तमांदिशमनु व्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । उत्ऽतमाम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥६.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(सः) वह व्रात्य-संन्यासी (उत्तमाम्) ऊर्ध्वा से भी उत्तम (दिशम् अनु) निर्देश या उद्देश्य को लक्ष्य कर के (वि, अचलत्) विशेषतया चला, प्रयत्नवान् हुआ।