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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 19
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आर्ची उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    सोऽना॑वृत्तां॒दिश॒मनु॒ व्यचल॒त्ततो॒ नाव॒र्त्स्यन्न॑मन्यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । अना॑वृत्ताम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् । तत॑: । न । आ॒ऽव॒र्त्स्यन् । अ॒म॒न्य॒त॒ ॥६.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोऽनावृत्तांदिशमनु व्यचलत्ततो नावर्त्स्यन्नमन्यत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । अनावृत्ताम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् । तत: । न । आऽवर्त्स्यन् । अमन्यत ॥६.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 19

    भाषार्थ -
    (सः) वह व्रात्य-संन्यासी, (अनावृत्ताम्) जो लौटती नहीं अर्थात् अनावर्तन, अनावृत्ति की (दिशम्) दिशा अर्थात् उद्देश्य को (अनु) लक्ष्य करके (व्यचलत्) विशेषतया चला; (ततः) उस दिशा या उद्देश्य से (न, आवस्यन्) वह न लौटेगा यह (अमन्यत)१ उस ने माना, या विचार किया।

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