अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
क्षुत्कु॒क्षिरिरा॑ वनि॒ष्ठुः पर्व॑ताः प्ला॒शयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्षुत् । कु॒क्षि: । इरा॑ । व॒नि॒ष्ठु: । पर्व॑ता: । प्ला॒शय॑: ॥१२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षुत्कुक्षिरिरा वनिष्ठुः पर्वताः प्लाशयः ॥
स्वर रहित पद पाठक्षुत् । कुक्षि: । इरा । वनिष्ठु: । पर्वता: । प्लाशय: ॥१२.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(क्षुत्) क्षुधा है (कुक्षिः) कोख, जठर, (इरा) अन्न है (वनिष्ठुः) स्थूल-आन्त [colon], (पर्वताः) पर्वत हैं (प्लाशयः) प्लाशियां, मांस पेशियां, mussles।
टिप्पणी -
[कुक्षिः = पशु की वह थैली जिसमें कि चबाया हुआ चारा एकत्रित होता है, जिस की कि जुगाली पशु करते हैं। वनिष्ठुः = “वनिष्ठोः स्थविरान्त्रात् (सायण, अथर्व० २।३३।४)। प्लाशयः = मांसपेशियां। ये शरीर में पर्वतश्रेणी के सदृश परस्पर सम्बद्ध हुई फैली हुई हैं । इरा-और-वनिष्ठु में तादात्म्य वर्णित किया है। वनिष्ठु में निःसार परिपक्व मल होता है]