अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 11
चेतो॒ हृद॑यं॒ यकृ॑न्मे॒धा व्र॒तं पु॑री॒तत् ॥
स्वर सहित पद पाठचेत॑: । हृद॑यम् । यकृ॑त् । मे॒धा । व्र॒तम् । पु॒रि॒ऽतत् ॥१२.११॥
स्वर रहित मन्त्र
चेतो हृदयं यकृन्मेधा व्रतं पुरीतत् ॥
स्वर रहित पद पाठचेत: । हृदयम् । यकृत् । मेधा । व्रतम् । पुरिऽतत् ॥१२.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 11
भाषार्थ -
(चेतः) चित्त है (हृदयम्) गौ का हृदय, (मेधा)१ आशु ग्रहणशक्ति है (यकृत्) जिगर [liver], (व्रतम्) व्रत है (पुरीतत्) शरीर में विस्तृत आन्तें।
टिप्पणी -
[चेतः, हृदयम्, —चित्त है विश्वाङ्ग, और हृदय है गौ का अङ्ग। इन दोनों में तादात्म्य है। योगदर्शन में भी चित्त और हृदय का परस्पर सम्बन्ध दर्शाया है "हृदये चित्तसंवित्" (३।३४), अर्थात् हृदय में चित्त के स्वरूप का ज्ञान होता है। मेधा और यकृत् का पारस्परिक सम्बन्ध अनुसन्धेय है। व्रत का अभिप्राय है व्रत में "खाद्य-अन्न"। इस प्रकार व्रत और पुरीतत् का परस्पर सम्बन्ध द्योतित हो जाता है] [(१) मेधा आशुग्रहणे कण्डवादिः।]