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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 15
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - साम्नी बृहती सूक्तम् - गौ सूक्त

    वि॒श्वव्य॑चा॒श्चर्मौष॑धयो॒ लोमा॑नि॒ नक्ष॑त्राणि रू॒पम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वऽव्य॑चा: । चर्म॑ । ओष॑धय: । लोमा॑नि । नक्ष॑त्राणि । रू॒पम् ॥१२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वव्यचाश्चर्मौषधयो लोमानि नक्षत्राणि रूपम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वऽव्यचा: । चर्म । ओषधय: । लोमानि । नक्षत्राणि । रूपम् ॥१२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 15

    भाषार्थ -
    (विश्वव्यचाः) अन्तरिक्ष में विस्तृत वायु, या विश्व में विस्तृत सौररश्मियां या, अन्तरिक्ष है (चर्म) गौ की चमड़ी, (ओषधयः लोमानि) ओषधियां हैं गौ के लोम, (नक्षत्राणि) नक्षत्र हैं (रूपम्) गौ के अङ्गों के [चमकते] रूप।

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