अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
क्रोधो॑ वृ॒क्कौ म॒न्युरा॒ण्डौ प्र॒जा शेपः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्रोध॑: । वृ॒क्कौ । म॒न्यु: । आ॒ण्डौ । प्र॒ऽजा । शेप॑: ॥१२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेपः ॥
स्वर रहित पद पाठक्रोध: । वृक्कौ । मन्यु: । आण्डौ । प्रऽजा । शेप: ॥१२.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
भाषार्थ -
(कोधः) क्रोध हैं (वृक्कौ) दो गुर्दे, (मन्युः) मन्यु है (आण्डौ) दो अण्ड-ग्रन्थियां (प्रजा) सन्तान है (शेपः) जननेन्द्रिय।
टिप्पणी -
[कोध में अज्ञानांश होता है, और मन्यु में ज्ञानांश होता है। ये१ दोनों मानसिक वृत्तियां हैं, विश्व के अङ्ग हैं। वृक्कौ हैं [बैल] के अङ्ग। इसी प्रकार अण्डौ और शेपः भी बैल के अङ्ग है, और प्रजा है विश्व का अङ्ग। क्रोध-और-वृक्कौ का, तथा मन्यु-और-आण्डौ का परस्पर सम्बन्ध अनुसन्धेन्य है] [१. क्रोध रजस्तमोगुणप्रधाना चित्तवृत्ति है, और मन्यु सत्त्वगुणा चित्तवृत्ति है। परमेश्वर को भी मन्यु कहा है, और उस से मन्यु की प्रार्थना भी की गई है। यथा ''मन्युरसि मन्युं मयि धेहि"।]