अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 21
प्र॒त्यङ्तिष्ठ॑न्धा॒तोद॒ङ्तिष्ठ॑न्त्सवि॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒त्यङ् । तिष्ठ॑न् । धा॒ता । उद॑ङ् । तिष्ठ॑न् । स॒वि॒ता ॥१२.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रत्यङ्तिष्ठन्धातोदङ्तिष्ठन्त्सविता ॥
स्वर रहित पद पाठप्रत्यङ् । तिष्ठन् । धाता । उदङ् । तिष्ठन् । सविता ॥१२.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 21
भाषार्थ -
(धाता) धारण-पोषण करने वाला सूर्य है (प्रत्यङ् तिष्ठन्) पश्चिम की ओर मुख कर खड़ा बैल, (सविता) उत्पादक तथा प्रेरक सूर्य है (उदङ् तिष्ठन्) उत्तर की ओर मुख कर खड़ा बैल।
टिप्पणी -
[मन्त्र २०, २१ में सूर्य की गति दर्शाई है, प्राङ् दक्षिण प्रत्यङ् तथा उदङ्। मकरसंक्रान्ति [लगभग २१ दिसम्बर] तक सूर्य दक्षिणभाग में गति करता रहता है। तदनन्तर सूर्य पश्चिमदिशा की ओर अग्रसर होता है। पश्चिम दिशा का सूर्य "धाता" है। इस काल में शीतकाल की वर्षा द्वारा खाद्यान्न पैदा होता है, जिस से प्राणियों का धारण-पोषण होता है। धाता= धा धारण-पोषणयोः। धाता की व्याख्या में देखो (निरुक्त ११।१।१०)। निरुक्त में धाता द्वारा "जीवातुमक्षिताम्" अर्थात् प्रवृद्ध-आजीविका प्राप्ति का कथन हुआ है। उदङ् के साथ "सविता" का वर्णन हुआ है। उत्तर दिशा में ही प्राणियों की अधिक उत्पत्ति है]