अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 20
इन्द्रः॒ प्राङ्तिष्ठ॑न्दक्षि॒णा तिष्ठ॑न्य॒मः ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । प्राङ् । तिष्ठ॑न् । द॒क्षि॒णा । तिष्ठ॑न् । य॒म: ॥१२.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः प्राङ्तिष्ठन्दक्षिणा तिष्ठन्यमः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । प्राङ् । तिष्ठन् । दक्षिणा । तिष्ठन् । यम: ॥१२.२०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 20
भाषार्थ -
(इन्द्रः) रश्मिरूपी ऐश्वर्यवाला सूर्य है, (प्राङ् तिष्ठन्) पूर्व की ओर मुख कर खड़ा बैल। (यमः) रश्मियों को नियन्त्रित किया हुआा सूर्य है, (दक्षिणा तिष्ठन्) दक्षिण की ओर मुख कर खड़ा बैल।
टिप्पणी -
[सूर्य जब विषुवरेखा अर्थात् भूमध्यरेखा पर होता है, तब सूर्य रश्मिरूपी ऐश्वर्य वाला होता है, उधर मुख कर खड़ा बैल मानो सूर्यरूप है। सूर्य पूर्वदिशा से जब दक्षिण की ओर जाता है तब शीतकाल होता है, मानो उस समय सूर्य यमरूप होता है, यतः वह निज रश्मियों को नियन्त्रित कर शैत्याधिक्य के कारण मृत्युरूप होता है, दक्षिण की ओर का सूर्य, मानो दक्षिण की ओर मुख कर खड़ा बैल है। "यमः यच्छतीति सतः" (निरुक्त १०।१२।१७)। इन्द्र और यम विश्व के अङ्ग हैं। इन्द्र और यम के द्युलोक में खड़े होने को, पूर्व और दक्षिण की ओर खड़ा बैल कहा है। इसके द्वारा दर्शा दिया है कि सूर्य वास्तव में एक स्थान में खड़ा है। उस में गति पृथिवी की गति के कारण प्रतीत होती है। तिष्ठन् = "ष्ठा गतिनिवृत्तौ"]