अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 19
अ॒ग्निरासी॑न॒ उत्थि॑तो॒ऽश्विना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नि: । आसी॑न: । उत्थि॑त: । अ॒श्विना॑ ॥१२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निरासीन उत्थितोऽश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नि: । आसीन: । उत्थित: । अश्विना ॥१२.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(अग्निः) अग्नि है (आसीनः) बैठा हुआ बैल, (अश्विना) दो अश्विन् तारा हैं (उत्थितः) उठा हुआ बैल।
टिप्पणी -
[अग्नि है पार्थिव-अग्नि। यह पृथिवीस्थ है। अतः अग्नि को बैठा बैल कहा है। अश्विनौ है मेषराशिस्थ दो तारा। ये द्युलोक में ऊंचे उठे हुए हैं, इस लिये अश्विनौ को उत्थित अर्थात् उठा हुआ बैल कहा है। अग्नि और अश्विनौ विश्व के अङ्ग हैं, और बैल का बैठना और उठना बैल की क्रियाए हैं। इन में तादात्म्य दर्शाया है।]