अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 17
रक्षां॑सि॒ लोहि॑तमितरज॒ना ऊब॑ध्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठरक्षां॑सि । लोहि॑तम् । इ॒त॒र॒ऽज॒ना: । ऊब॑ध्यम् ॥१२.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
रक्षांसि लोहितमितरजना ऊबध्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठरक्षांसि । लोहितम् । इतरऽजना: । ऊबध्यम् ॥१२.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(रक्षांसि) राक्षसस्वभाव के लोग हैं (लोहितम्) गौ का खून, (इतरजनाः) उपर्युक्त कथितों से भिन्न लोग हैं, (ऊबध्यम्) गौ का गोबररूप, सामाजिक जीवन में अल्पोपयोगी।
टिप्पणी -
[राक्षस खूनी स्वभाव वाले होते हैं, अतः इन्हें खून कहा है]