अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 23
मि॒त्र ईक्ष॑माण॒ आवृ॑त्त आन॒न्दः ॥
स्वर सहित पद पाठमि॒त्र: । ईक्ष॑माण: । आऽवृ॑त्त: । आ॒ऽन॒न्द: ॥१२.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
मित्र ईक्षमाण आवृत्त आनन्दः ॥
स्वर रहित पद पाठमित्र: । ईक्षमाण: । आऽवृत्त: । आऽनन्द: ॥१२.२३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 23
भाषार्थ -
(ईक्षमाणः) तृप्त हो कर जब बैल देख रहा होता है तब वह (मित्रः) मित्र के सदृश स्नेहभरी दृष्टि से मानो देखता है। (आवृत्तः) जब वापिस लौटता है तब वह (आनन्दः) आनन्दस्वरूप होता है। आनन्दमयी अवस्था में होता है। मित्रः = त्रिमिदा स्नेहने (भ्वादिः)। अथवा (मित्रः) वर्षा द्वारा स्निग्ध करने वाला सूर्य, जोकि पृथिवी का (ईक्षमाणः), निरीक्षण करता है। (ईक्षमाणः) ईक्षण करता हुआ बैलरूप है। (आवृत्तः) प्रातःकाल पुनः लौट कर आया सूर्य - (आनन्दः) जोकि आनन्द प्रद होता है, आवृत्त हुए आनन्दस्वरूप बैल सदृश है।