अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 26
उपै॑नं वि॒श्वरू॑पाः॒ सर्व॑रूपाः प॒शव॑स्तिष्ठन्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । ए॒न॒म् । वि॒श्वऽरू॑पा: । सर्व॑ऽरूपा: । प॒शव॑: । ति॒ष्ठ॒न्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१२.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
उपैनं विश्वरूपाः सर्वरूपाः पशवस्तिष्ठन्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठउप । एनम् । विश्वऽरूपा: । सर्वऽरूपा: । पशव: । तिष्ठन्ति । य: । एवम् । वेद ॥१२.२६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 26
भाषार्थ -
(यः) जो (एवम्) इस प्रकार (वेद) जानता है (एनम्) इसे (विश्वरूपाः) विश्व के रूप वाले, (सर्वरूपाः) सर्वरूपी (पशवः) पशु (उपतिष्ठन्ति) उपस्थित हो जाते हैं।
टिप्पणी -
[अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति भिन्न-भिन्न पशुओं के लाभों को जानता है वह निज आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न पशुओं का संग्रह करता है। यथा दूध के लिये गौ का, कृषि के लिये बैल का, सवारी के लिये अश्व का, गृहरक्षा के लिये श्वा का। इस प्रकार विविध प्रयोजनों के लिये विविध पशुओं का संग्रह करता है।