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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - साम्नी बृहती सूक्तम् - गौ सूक्त

    विश्वं॑ वा॒युः स्व॒र्गो लो॒कः कृ॑ष्ण॒द्रं वि॒धर॑णी निवे॒ष्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑म् । वा॒यु: । स्व॒:ऽग: । लो॒क: । कृ॒ष्ण॒ऽद्रम् । वि॒ऽधर॑णी । नि॒ऽवे॒ष्य: १।१२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वं वायुः स्वर्गो लोकः कृष्णद्रं विधरणी निवेष्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वम् । वायु: । स्व:ऽग: । लोक: । कृष्णऽद्रम् । विऽधरणी । निऽवेष्य: १।१२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (विश्वम्) विशेषतया अन्तरिक्ष में गति करने वाली तथा बढ़ने [फैलने] वाली अन्तरिक्षस्थ वायु है (वायुः) गौ की श्वासोच्छ्वास की प्राणवायु है, (स्वर्गो लोकः) स्वर्ग लोक है (कृष्णद्रम् = कृष्णद्रुम्१) गहरे-हरे वृक्ष [गौ के लिये], (विधरणी) विस्तृत पृथिवी है (निवेष्यः) गौ के बैठने तथा विश्राम करने का स्थान [गोशाला]।

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