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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 35
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    सऽइषु॑हस्तैः॒ स नि॑ष॒ङ्गिभि॑र्व॒शी सꣳस्र॑ष्टा॒ स युध॒ऽइन्द्रो॑ ग॒णेन॑। स॒ꣳसृ॒ष्ट॒जित् सो॑म॒पा बा॑हुश॒र्ध्युग्रध॑न्वा॒ प्रति॑हिताभि॒रस्ता॑॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। इषु॑हस्तै॒रितीषु॑ऽहस्तैः। सः। नि॒ष॒ङ्गिभि॒रिति॑ निष॒ङ्गिऽभिः॑। व॒शी। सस्र॒ष्टेति॒ सम्ऽस्र॑ष्टा। सः। युधः॑। इन्द्रः॑। ग॒णेन॑। स॒ꣳसृ॒ष्ट॒जिदिति॑ सꣳसृष्ट॒ऽजित्। सो॒म॒पा इति॑ सोम॒ऽपाः। बा॒हु॒श॒र्द्धीति॑ बाहुऽशर्द्धी। उ॒ग्रध॒न्वेत्यु॒ग्रऽध॑न्वा। प्रति॑हिताभि॒रिति॒ प्रति॑ऽहिताभिः। अस्ता॑ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सऽइषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी सँस्रष्टा स युधऽइन्द्रो गणेन । सँसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इषुहस्तैरितीषुऽहस्तैः। सः। निषङ्गिभिरिति निषङ्गिऽभिः। वशी। सस्रष्टेति सम्ऽस्रष्टा। सः। युधः। इन्द्रः। गणेन। सꣳसृष्टजिदिति सꣳसृष्टऽजित्। सोमपा इति सोमऽपाः। बाहुशर्द्धीति बाहुऽशर्द्धी। उग्रधन्वेत्युग्रऽधन्वा। प्रतिहिताभिरिति प्रतिऽहिताभिः। अस्ता॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 35
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    पदार्थ -
    (सः) वह सेनापति (इषुहस्तैः) शस्त्रों को हाथों में रखनेहारे और अच्छे सिखाये हुए बलवान् (निषङ्गिभिः) जिनके भुशुण्डी=बन्दूक, शतघ्नी=तोप और आग्नेय आदि बहुत अस्त्र विद्यमान हैं, उन भृत्यों के साथ वर्त्तमान (सः) वह (संस्रष्टा) श्रेष्ठ मनुष्यों तथा शस्त्र और अस्त्रों का सम्बन्ध करने वाला (वशी) अपने इन्द्रिय और अन्तःकरण को जीते हुए जो (संसृष्टजित्) प्राप्त शत्रुओं को जीतता (सोमपाः) बलिष्ठ ओषधियों के रस को पीता (बाहुशर्द्धी) भुजाओं में जिसके बल विद्यमान हो और (उग्रधन्वा) जिसका तीक्ष्ण धनुष् है, (सः) वह (युधः) युद्धशील (अस्ता) शस्त्र और अस्त्रों को अच्छे प्रकार फेंकने तथा (इन्द्रः) शत्रुओं को मारने वाला और (गणेन) अच्छे सीखे हुए भृत्यों वा सेनावीरों ने (प्रतिहिताभिः) प्रत्यक्षता से स्वीकार की हुई सेना के साथ वर्त्तमान होता हुआ जनों को जीते॥३५॥

    भावार्थ - सब का ईश राजा वा सब सेनाओं का अधिपति अच्छे सीखे हुए वीर भृत्यों की सेना के साथ वर्त्तमान दुःख से जीतने योग्य शत्रुओं को भी जीत सके, वैसे सब को करना चाहिये॥३५॥

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