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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    आ॒जुह्वा॑नः सु॒प्रती॑कः पु॒रस्ता॒दग्ने॒ स्वं योनि॒मासी॑द साधु॒या। अ॒स्मिन्त्स॒धस्थे॒ऽअध्युत्त॑रस्मि॒न् विश्वे॑ देवा॒ यज॑मानश्च सीदत॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒जुऽह्वा॑नः। सु॒प्रती॑क॒ इति॑ सु॒ऽप्रती॑कः। पु॒रस्ता॑त्। अग्ने॑। स्वम्। योनि॑म्। आ। सी॒द॒। सा॒धु॒येति॑ साधु॒ऽया। अ॒स्मिन्। स॒धस्थे॑। अधि॑। उत्त॑रस्मिन्। विश्वे॑। दे॒वाः॒। यज॑मानः। च॒। सी॒द॒त॒ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आजुह्वानः सुप्रतीकः पुरस्तादग्ने स्वँयोनिमा सीद साधुया । अस्मिन्त्सस्हस्थेऽअध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आजुह्वान इत्याजुऽह्वानः। सुप्रतीक इति सुऽप्रतीकः। पुरस्तात्। अग्ने। स्वम्। योनिम्। आ। सीद। साधुयेति साधुऽया। अस्मिन्। सधस्थे। अधि। उत्तरस्मिन्। विश्वे। देवाः। यजमानः। च। सीदत॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 73
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    पदार्थ -
    हे (अग्ने) योगाभ्यास से प्रकाशित आत्मा युक्त (पुरस्तात्) प्रथम से (आजुह्वानः) सत्कार के साथ बुलाये (सुप्रतीकः) शुभगुणों को प्राप्त हुए (यजमानः) योगविद्या के देने वाले आचार्य्य! आप (साधुया) श्रेष्ठ कर्मों से (अस्मिन्) इस (सधस्थे) एक साथ के स्थान में (स्वम्) अपने (योनिम्) परमात्मा रूप घर में (आ, सीद) स्थिर हो (च) और हे (विश्वे) सब (देवाः) दिव्य आत्मा वाले योगीजनो! आप लोग श्रेष्ठ कामों से (उत्तरस्मिन्) उत्तर समय एक साथ सत्य सिद्धान्त पर (अधि, सीदत) अधिक स्थित होओ॥७३॥

    भावार्थ - जो अच्छे कामों को करके योगाभ्यास करने वाले विद्वान् के संग और प्रीति से परस्पर संवाद करते हैं, वे सब के अधिष्ठान परमात्मा को प्राप्त होकर सिद्ध होते हैं॥७३॥

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