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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 90
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    व॒यं नाम॒ प्रं ब्र॑वामा घृ॒तस्या॒स्मिन् य॒ज्ञे धा॑रयामा॒ नमो॑भिः। उप॑ ब्रह्मा॒ शृ॑णवच्छ॒स्यमा॑नं॒ चतुः॑शृङ्गोऽवमीद् गौ॒रऽए॒तत्॥९०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम्। नाम॑। प्र। ब्र॒वा॒म॒। घृ॒तस्य॑। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। धा॒र॒या॒म॒। नमो॑भिरिति॒ नमः॑ऽभिः। उप॑। ब्र॒ह्मा। शृ॒ण॒व॒त्। श॒स्यमा॑नम्। चतुः॑शृङ्ग॒ इति॒ चतुः॑ऽशृङ्गः। अ॒व॒मी॒त्। गौ॒रः। ए॒तत् ॥९० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयन्नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन्यज्ञे धारयामा नमोभिः । उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानञ्चतुः शृङ्गोवमीद्गौरऽएतत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वयम्। नाम। प्र। ब्रवाम। घृतस्य। अस्मिन्। यज्ञे। धारयाम। नमोभिरिति नमःऽभिः। उप। ब्रह्मा। शृणवत्। शस्यमानम्। चतुःशृङ्ग इति चतुःऽशृङ्गः। अवमीत्। गौरः। एतत्॥९०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 90
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    पदार्थ -
    जिसको (चतुःशृङ्गः) जिसके चारों वेद सींगों के समान उत्तम हैं, वह (गौरः) वेदवाणी में रमण करने वा वेदवाणी को देने और (ब्रह्मा) चारों वेदों को जानने वाला विद्वान् (अवमीत्) उपदेश करे वा (उप, शृणवत्) समीप में सुने, वह (घृतस्य) घी वा जल का (शस्यमानम्) प्रशंसित हुआ गुप्त (नाम) नाम है, (एतत्) इसको (वयम्) हम लोग औरों के प्रति (प्र, ब्रवाम) उपदेश करें और (अस्मिन्) इस (यज्ञे) गृहाश्रम व्यवहार में (नमोभिः) अन्न आदि पदार्थों के साथ (धारयाम) धारण करें॥९०॥

    भावार्थ - मनुष्य लोग मनुष्य देह को पाकर सब पदार्थों के नाम और अर्थों को पढ़ाने वालों से सुनकर औरों के लिये कहें और इस सृष्टि में स्थित पदार्थों से समस्त कामों की सिद्धि करावें॥९०॥

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