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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 80
    ऋषिः - सप्तऋषय ऋषयः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - आर्ष्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    शु॒क्रज्यो॑तिश्च चि॒त्रज्यो॑तिश्च स॒त्यज्योति॑श्च॒ ज्योति॑ष्माँश्च। शु॒क्रश्च॑ऽऋत॒पाश्चात्य॑ꣳहाः॥८०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒क्रज्यो॑ति॒रिति॑ शु॒क्रऽज्यो॑तिः। च॒। चि॒त्रज्यो॑ति॒रिति॑ चि॒त्रऽज्यो॑तिः। च॒। स॒त्यज्यो॑ति॒रिति॑ स॒त्यऽज्यो॑तिः। च॒। ज्योति॑ष्मान्। च॒। शु॒क्रः। च॒। ऋ॒त॒पा इत्यृ॑त॒ऽपाः। च॒। अत्य॑ꣳहा॒ इत्यति॑ऽअꣳहाः ॥८० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिष्माँश्च । शुक्रश्चऽऋतपाश्चात्यँहाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शुक्रज्योतिरिति शुक्रऽज्योतिः। च। चित्रज्योतिरिति चित्रऽज्योतिः। च। सत्यज्योतिरिति सत्यऽज्योतिः। च। ज्योतिष्मान्। च। शुक्रः। च। ऋतपा इत्यृतऽपाः। च। अत्यꣳहा इत्यतिऽअꣳहाः॥८०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 80
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (शुक्रज्योतिः) शुद्ध जिसका प्रकाश (च) और (चित्रज्योतिः) अद्भुत जिसका प्रकाश (च) और (सत्यज्योतिः) विनाशरहित जिसका प्रकाश (च) और (ज्योतिष्मान्) जिस के बहुत प्रकाश हैं (च) और (शुक्रः) शीघ्र करने वाला वा शुद्धस्वरूप (च) और (अत्यंहाः) जिसने दुष्ट काम को दूर किया (च) और (ऋतपाः) सत्य की रक्षा करने वाला ईश्वर है, वैसे तुम लोग भी होओ॥८०॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस जगत् में बिजुली वा सूर्य आदि प्रजा और शुद्धि के करने वाले पदार्थों को बना कर ईश्वर ने जगत् शुद्ध किया है, वैसे ही शुद्धि, सत्य और विद्या के उपदेश की क्रियाओं से विद्वान् जनों को मनुष्यादि शुद्ध करने चाहियें। इस मन्त्र में अनेक चकारों के होने से यह भी ज्ञात होता है कि सब के ऊपर प्रीति आदि गुण भी विधान करने चाहियें॥८०॥

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