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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 48
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रबृहस्पत्यादयो देवताः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    यत्र॑ बा॒णाः स॒म्पत॑न्ति कुमा॒रा वि॑शि॒खाऽइ॑व। तन्न॒ऽइन्द्रो॒ बृह॒स्पति॒रदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु वि॒श्वाहा॒ शर्म॑ यच्छतु॥४८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑। बा॒णाः। सं॒पत॒न्तीति॑ स॒म्ऽपत॑न्ति। कु॒मा॒राः। वि॒शि॒खाऽइ॒वेति॑ विशि॒खाःऽइ॑व। तत्। नः॒। इन्द्रः॑। बृह॒स्पतिः॑। अदि॑तिः। शर्म्म॑। य॒च्छ॒तु॒। वि॒श्वाहा॑। शर्म्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥४८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्र वाणाः सम्पतन्ति कुमारा विशिखाऽइव । तन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र। बाणाः। संपतन्तीति सम्ऽपतन्ति। कुमाराः। विशिखाऽइवेति विशिखाःऽइव। तत्। नः। इन्द्रः। बृहस्पतिः। अदितिः। शर्म्म। यच्छतु। विश्वाहा। शर्म्म। यच्छतु॥४८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 48
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    पदार्थ -
    (यत्र) जिस संग्राम में (विशिखा इव) विना चोटी के वा बहुत चोटियों वाले (कुमाराः) बालकों के समान (बाणाः) बाण आदि शस्त्र अस्त्रों के समूह (संपतन्ति) अच्छे प्रकार गिरते हैं, (तत्) वहां (बृहस्पतिः) बड़ी सभा वा सेना का पालने वाला (इन्द्रः) सेनापति (शर्म) आश्रय वा सुख के (यच्छतु) देवे और (अदितिः) नित्य सभासदों से शोभायमान सभा (विश्वाहा) सब दिन (नः) हम लोगों के लिये (शर्म) सुख सिद्ध करने वाले घर को (यच्छतु) देवे॥४८॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे बालक इधर-उधर दौड़ते हैं, वैसे युद्ध के समय में योद्धा लोग भी चेष्टा करें। जो युद्ध में घायल, क्षीण, थके, पसीजे, छिदे, भिदे, कटे, फटे अङ्ग वाले मूर्छित हों, उनको युद्धभूमि से शीघ्र उठा सुखालय (शफाखाने) में पहुँचा औषध पट्टी कर स्वस्थ करें और जो मर जावें, उनको विधि से दाह दें, राजजन उनके माता-पिता, स्त्री और बालकों की सदा रक्षा करें॥४८॥

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