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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 62
    ऋषिः - विधृतिर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - निचृदार्ष्यनुस्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    दे॒व॒हूर्य॒ज्ञऽआ च॑ वक्षत् सुम्न॒हूर्य॒ज्ञऽआ च॑ वक्षत्। यक्ष॑द॒ग्निर्दे॒वो दे॒वाँ२ऽआ च॑ वक्षत्॥६२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व॒हूरिति॑ देव॒ऽहूः। य॒ज्ञः। आ। च॒। व॒क्ष॒त्। सु॒म्न॒हूरिति॑ सुम्न॒ऽहूः। य॒ज्ञः। आ। च॒। व॒क्ष॒त्। यक्ष॑त्। अ॒ग्निः। दे॒वः। दे॒वान्। आ। च॒। व॒क्ष॒त् ॥६२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवहूर्यज्ञऽआ च वक्षत्सुम्नहूर्यज्ञ आ च वक्षत् । यक्षदग्निर्देवो देवाँऽआ च वक्षत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवहूरिति देवऽहूः। यज्ञः। आ। च। वक्षत्। सुम्नहूरिति सुम्नऽहूः। यज्ञः। आ। च। वक्षत्। यक्षत्। अग्निः। देवः। देवान्। आ। च। वक्षत्॥६२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 62
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जो (देवहूः) विद्वानों को बुलाने (यज्ञः) पूजा करने योग्य ईश्वर हम लोगों को सत्य (आ, वक्षत्) उपदेश करे (च) और असत्य से हमारा उद्धार करे वा जो (सुम्नहूः) सुखों को बुलाने वाला (यज्ञः) पूजन करने योग्य ईश्वर हम लोगों के लिये सुखों को (आ, वक्षत्) प्राप्त करे (च) और दुःखों का विनाश करे वा जो (अग्निः) आप प्रकाशमान (देवः) समस्त सुख का देने वाला ईश्वर हम लोगों को (देवान्) उत्तम गुणों वा भोगों को (यक्षत्) देवे (च) और (आ, वक्षत्) पहुँचावे अर्थात् कार्य्यान्तर से प्राप्त करे, उसको आप लोग निरन्तर सेवो॥६२॥

    भावार्थ - जो उत्तम शास्त्र जानने वाले विद्वानों से उपासना किया जाता तथा जो सुखस्वरूप और मङ्गल कार्य्यों का देने वाला परमेश्वर है, उसकी समाधियोग से मनुष्य उपासना करें॥६२॥

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